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एक राष्ट्र एक चुनाव : ‘ONOE’ से संबंधित विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा

बीएस राय : संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल लोकसभा में मंगलवार को एक राष्ट्र एक चुनाव से संबंधित विधेयक पेश करेंगे। इस संविधान संशोधन से पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का रास्ता साफ हो जाएगा। विपक्षी दलों ने इसे संघीय ढांचे के लिए खतरा बताया है।

एक राष्ट्र एक चुनाव से संबंधित विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार, 17 दिसंबर 2024 को लोकसभा में पेश किया जाएगा। यह विधेयक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सबसे महत्वाकांक्षी एजेंडों में से एक है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल सदन में विधेयक पेश करेंगे।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था करना है, जो भारतीय चुनाव प्रक्रिया में बड़े बदलाव का संकेत है। एक राष्ट्र एक चुनाव का प्रस्ताव क्या है? एक राष्ट्र एक चुनाव का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इससे न केवल चुनावी प्रक्रिया की लागत कम होगी, बल्कि बार-बार चुनाव होने से शासन और विकास कार्यों में आने वाली बाधा भी कम होगी।

सरकार ने सभी सांसदों को विधेयक की प्रतियां वितरित की हैं, ताकि वे इसके प्रावधानों का अध्ययन कर सकें। संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो रहा है, इसलिए सरकार के पास इसे पारित कराने के लिए केवल चार दिन हैं। विधेयक पर संसद की प्रक्रिया सूत्रों के अनुसार, संविधान संशोधन विधेयक पेश होने के बाद इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास भेजा जा सकता है।

यह विधेयक कई संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन की मांग करता है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। हालांकि, स्थानीय निकाय चुनाव कराने को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। भविष्य में सरकार की ओर से इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं। विपक्ष का रुख और चिंताएं सत्तारूढ़ दल जहां इस पहल को समय की जरूरत बता रहा है, वहीं विपक्षी दल इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं।

डीएमके और तृणमूल कांग्रेस समेत कई दलों का कहना है कि यह कदम भारत के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है। क्षेत्रीय दलों पर असर: विपक्ष का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो जाएगी और केंद्र का सत्ता पर ज्यादा नियंत्रण हो जाएगा।

आलोचकों का कहना है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यह मॉडल व्यावहारिक नहीं हो सकता। सत्तारूढ़ दल का तर्क भाजपा और उसके सहयोगी दलों का कहना है कि एक राष्ट्र एक चुनाव से: लागत में कमी आएगी: बार-बार चुनाव कराने पर होने वाला भारी खर्च बच जाएगा। शासन में सुधार: चुनाव आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य बार-बार बाधित नहीं होंगे।

पूरे देश में एक साथ चुनाव होने से प्रशासनिक स्थिरता और बेहतर समन्वय स्थापित होगा। अगला कदम क्या होगा? विधेयक पेश होने के बाद संसद में इसके प्रावधानों पर व्यापक बहस होने की संभावना है। इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसमें दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत आवश्यक है।

एक राष्ट्र एक चुनाव भारतीय चुनाव प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, राजनीतिक और व्यावहारिक चुनौतियों का समाधान करना होगा। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस पर आम सहमति बनाना एक कठिन काम हो सकता है। अगले कुछ दिन इस विधेयक का भविष्य और भारतीय लोकतंत्र की दिशा तय करेंगे।

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