महिलाओं को पुरुषों की तुलना में क्यों अधिक होता है स्ट्रोक का खतरा?
नई दिल्ली। विश्व स्ट्रोक दिवस पर विशेषज्ञों ने कहा कि गर्भावस्था में या गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग के कारण होने वाले हार्मोनल परिवर्तन से पुरुषों की तुलना में महिलाओं में स्ट्रोक के अधिक मामले देखने के लिए मिलते हैं।
स्ट्रोक दुनिया भर में होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन के अनुसार यह महिलाओं में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है और इससे पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मृत्यु अधिक होती है।
बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के न्यूरोलॉजी के प्रमुख निदेशक और एचओडी डॉ. अतुल प्रसाद ने आईएएनएस को बताया , लंबी उम्र में महिलाओं के हार्मोनल परिवर्तन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये परिवर्तन गर्भावस्था, प्रसव, गर्भनिरोधक गोलियों और मेनोपॉज से प्रभावित होते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर और हृदय संबंधी रोग जैसे कि एट्रियल फिब्रिलेशन, अनियमित हृदय धड़कन के साथ प्रदूषण भी अन्य प्रमुख जोखिम कारक हैं।
आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के चीफ-न्यूरोलॉजी डॉ. सुमित सिंह ने बताया, “माइग्रेन से जूझ रही महिलाओं में गर्भनिरोधक जैसे कारकों के साथ स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है। वहीं गर्भावस्था की एक जटिलता प्रीक्लेम्पसिया स्ट्रोक के जोखिम को दोगुना कर देती है, लेकिन इस पर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है।
विशेषज्ञों ने उल्लेख किया कि महिलाओं में अक्सर असामान्य या कम पहचाने जाने वाले स्ट्रोक के लक्षण दिखाई देते है। इन लक्षणों में थकान, सामान्य कमजोरी, भ्रम मतली और उल्टी शामिल हैं। इसकी वजह से बीमारी का पता चलने और इसके इलाज में देरी हो जाती है।
सिंह ने कहा, बोलने में कठिनाई, अचानक कमजोरी और चेहरे का लटकना जैसे सामान्य लक्षण महिला और पुरुष दोनों में ही पाए जाते है। हालांकि, महिलाओं में चक्कर आना, थकान, मतली और यहां तक कि हिचकी के रूप में भी इसके लक्षण छिपे होते हैं। ऐसे असामान्य लक्षणों के कारण अक्सर इलाज में देरी हो जाती है।
विशेषज्ञों द्वारा इस्केमिक स्ट्रोक को रोकने के लिए बीपी और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने के साथ धूम्रपान से बचना और स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की सलाह दी जाती है।