आखिर क्यों तुलसी माता ने गणेश जी को दिया संसार का भयंकर श्राप? वजह जान रह जाएंगे दंग

गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है. भगवान गणेश की पूजा में कई चीजें अर्पित की जाती हैं, लेकिन तुलसी का उपयोग वर्जित माना गया है. इसके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है.

आज से गणेश चतुर्थी का पावन उत्सव शुरू हो रहा है. पंडाल से लेकर घरों तक गणपति जी विराजमान होंगे.यह उत्सव पूरे 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान लोग गणपति बप्पा की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करेंगे. मान्यता है कि उनकी पूजा-अर्चना करने से बप्पा अपनी कृपा बरसाते हैं और जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की पूजा में तुलसी अर्पित करना वर्जित माना गया है. दरअसल, इसके पीछे एक रोचक कथा जुड़ी हुई है.आइए जानते हैं इस रोचक कथा के बारे में.  

गणेश जी की पूजा में तुलसी क्यों वर्जित है? 

शास्त्रों के अनुसार, गणेश पूजा में तुलसी अर्पित नहीं की जाती.  इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसमें बताया गया है कि माता तुलसी भगवान गणेश से प्रेम करती थीं और उनसे विवाह की इच्छा रखती थीं.  उन्होंने अपनी यह इच्छा गणेश जी के सामने व्यक्त की, लेकिन गणेश जी ने विवाह के लिए मना कर दिया.  इस बात से नाराज होकर माता तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनकी दो शादियां होंगी. माना जाता है कि बदले में गणेश जी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा.  इसी कारण तुलसी और गणेश जी के बीच शत्रुता उत्पन्न हुई और तभी से गणेश पूजा में तुलसी का उपयोग वर्जित माना गया है.  

कहा जाता है कि अगर आप भूलवश भी गणेश जी की पूजा में तुलसी चढ़ाते हैं, तो आपको जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए गणेश पूजन में तुलसी अर्पित करने से बचना चाहिए. 

गणेश जी को अर्पित करें ये चीजें

गणेश जी की पूजा में तुलसी की जगह कुछ अन्य चीजों का विशेष महत्व होता है.  गणेश जी को दुर्वा (घास) और बेलपत्र अत्यंत प्रिय हैं.  इन्हें पूजा में अवश्य शामिल करना चाहिए. इसके अलावा, चंदन, सुपारी, पीले फूल, मोदक (मिठाई) और वस्त्र आदि भी गणेश जी को अर्पित किए जा सकते हैं.  ऐसा करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है.गणेश चतुर्थी के अवसर पर सही तरीके से पूजा करके आप भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. 

भगवान गणेश को इन मंत्रों के जप से करें प्रसन्न

1. महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।

2. गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।

3. ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

4. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गण्पत्ये वर वरदे नमः।

5. ॐ वक्रतुण्डेक द्रष्टाय क्लींहीं श्रीं गं गणपतये।

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