कम्युनिस्ट सेकुलर हैं तालिबान

कम्युनिस्ट सेकुलर हैं तालिबान

वयं राष्ट्रे जागृयाम
अपने दुश्मन को पहचानिए और उस पर झपट पड़िए ,शुतुरमुर्ग़ बनने से काम नहीं चलेगा!

विवेकानंद शुक्ला । तालिबान इस्लामिक कम्युनिस्ट हैं और कम्युनिस्ट सेकुलर तालिबान हैं क्योंकि इन दोनो विचारधारा मे सत्ता प्राप्त करने के लिए कट्टरता,बर्बरता और ख़ून-ख़राबा जायज़ है। दोनो को लोकतंत्र से नफ़रत है।दोनो का DNA एक है तभी तो सब लेफ़्ट-लिबरल ख़ैरातों और मौक़ापरस्त बौधिक चुप हैं।तालिबानी और कम्यूनिस्ट विचारधारा की समाप्ति ही एक सभ्य दुनिया को बनाने की पहली और आख़िरी शर्त होगी।


तालिबान पर बोलने का समय आया तो मुंह में फेविकोल पीकर बैठ गए…

इनकी ज़ुबान हलक में अटक गयी हैं।
इनकी मोमबत्तियाँ बुझ गयी हैं।
उनकी तख़्तियाँ गल गयी हैं।

तथाकथित प्रगतिशील और आधुनिक विश्व के बनावटी चेहरे पर कालिख़ पोतते हुए अफ़ग़ानिस्तान मे तालिबानियों ने ये दिखा दिया कि आदम जात अभी भी जानवर है।अफगानिस्तान में इंसानियत शर्मसार हुई है ,औरतें नीलाम हो रही हैं और हमलोग बस तमाशा देखते रह गए।
मीडिया के माध्यम से वहा की दिल दहला देने वाली तस्वीरें आ रही हैं।21 सदी में ऐसी तस्वीर देखकर विश्वास नहीं होता हैं की एक बर्बर आतंकी संगठन लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देते हुए कब्जा कर लेता है और दुनिया मौन है।
एक कार्टून पर फ़्रान्स के विरोध मेन और इजराइल के खिलाफ फिलिस्तीन के लिए नारे लगाकर सड़क पर आने वाले तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी, अफगानिस्तान के आतंक पर चुप क्यों है? ऐसे लोगों का मौन ये साबित करता है कि इनके अंदर भी कहीं न कहीं तालिबान छिपा है जो बस मौक़े की तलाश में है!

अफगानिस्तान और फिलिस्तीन में मरने वाले तो एक ही मज़हब के तो हैं।एकदम से सन्नाटा पसरा हुआ है !! Save Kabul,,Save Afghanistan जैसा कोई हैशटैग नहीं ?? यानि कि तुम्हारी ह्यूमैनिटी को मानना पड़ेगा लिब्रांडुओं।

इन तालिबानियों और कम्यूनिस्टों के एजेंडे को गहराई से समझिये ,इनको बस इज़राइल और भारत के ही मुसलमानों पर अत्याचार दिखता है ,इनको वीगर मुसलमानों पर अत्याचार दिखेगा ना ही अफगानियों पर।
जिन तालिबानियों और कम्यूनिस्टों के लिए औरत सिर्फ एक हवस पूरी करने का खिलौना हो वो क्या बोलेंगे? कट्टरवाद और भौतिकवाद की जंजीरों में जकड़ी जिनकी संस्कृति और सभ्यता हो वो क्या बोलेंगे? ऐसे कुकृत्यों की भर्त्सना तो जिंदा जमीर वाले ही कर सकते हैं

नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला पश्तो हैं। जब धारा 370 हटा तब इसका का कहना था कि लड़कियाँ स्कूल नहीं जा पाएँगी। आज उनकी अफ़ग़ानी लड़कियों का बलात्कार हो रहा है, औरतों को नीलाम किया जा रहा है,तालिबानी आतंकियों से ज़बरन उनका निकाह किया जा रहा है। तब मलाला को कोई मलाल ही नहीं है। बस भारत के मामले में मुँह खोलना आता है।मलाला यूसफ़ को धारा 370 हटने से आपत्ति थी, तथा ग्रेटा, रिहाना और मियां खलीफा को हिंदुस्तानी “किसानों” की इतनी चिंता थी कि वो विचिलित हो उठी थीकहां गई ग्रेटा थनबर्ग, रिहाना, मलाला और मियां खलीफा…? इनमें से किसी ने भी तालिबानों की क्रूरता पर कुछ कहा?? ये कठपुतलियां हैं जो भारत विरोधी ताकतो के हाथो नाचती है।

अब मालूम हुआ कि ट्रम्प के राष्ट्रपति न बनने पर भारत के वामपंथी, देशद्रोही,खान मार्केट गैंग क्यों खुश था।
जो लोग सोच रहे हैं कि तालिबानी इस्लाम अफगानिस्तान तक सीमित है वो शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर दबाकर खतरे टालने का यत्न कर रहे हैं। हम नही चेते तो यही स्थिति भारत के कई हिस्सों में भी होगा।तालिबान के खिलाफ अल्ला के बंदों और कम्यूनिस्टों का मौन ये सिद्ध करता है कि अंदर से सब तालिबान ही हैं।
इन तालिबानियों और कम्यूनिस्टों के अजेंडे एक दूसरे के पूरक है।पुरे विश्व को , ख़ासकर हिंदुस्तान को चाहिए कि इन तालिबानियों और कम्यूनिस्टों के बर्बर और कट्टर विचारधारा को अपनी धरती के सभी कोनों मे इनको कुचल दिया जाय और इस विचारधारा को समाप्त कर दिया जाय। तालिबानी और कम्यूनिस्ट विचारधारा की समाप्ति ही एक सभ्य दुनिया को बनाने की पहली और आख़िरी शर्त होगी।
तालिबान पर बोलने का समय आया तो मुंह में फेविकोल पीकर बैठ गए…

मेरा देश बदल रहा है ,
ये पब्लिक है , सब जानने लगी है …
जय हिंद-जय राष्ट्र !

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