देश भर में मनाई जा रही सरदार पटेल की 75वीं पुण्यतिथि

राघवेन्द्र प्रताप सिंह: सरदार वल्लभभाई पटेल स्मृति दिवस के मौके पर पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला सहित भाजपा नेताओं ने लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया। दरअसल, राष्ट्रीय एकता के प्रतीक सरदार पटेल की सोमवार को पुण्यतिथि है। इस मौके पर पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा,”लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को उनकी 75वीं पुण्यतिथि पर मेरा सादर नमन। उन्होंने देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। अखंड और सशक्त भारतवर्ष के निर्माण में उनका अतुलनीय योगदान कृतज्ञ राष्ट्र कभी भुला नहीं सकता।” सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत के निर्माण में 562 रियासतों को एकजुट करने और आधुनिक भारत की नींव रखने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सरदार पटेल के नेतृत्व और राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के कारण, सरदार पटेल को “राष्ट्रीय एकता के वास्तुकार और भारत के लौह पुरुष” के रूप में जाना जाता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद में हुआ था।
एक किसान परिवार में जन्मे वल्लभ भाई पटेल जब छोटे थे, तब अपने पिताजी के साथ खेत पर जाया करते थे। एक दिन जब उनके पिताजी खेत में हल चला रहे थे तो वल्लभ भाई पटेल उन्हीं के साथ चलते-चलते पहाड़े याद कर रहे थे। उसी दौरान उनके पांव में एक बड़ा सा कांटा चुभ गया किन्तु वे हल के पीछे चलते हुए पहाड़े कंठस्थ करने में इस कदर लीन हो गए कि उन पर कांटा चुभने का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा। जब एकाएक उनके पिताजी की नजर उनके पांव में घुसे बड़े से कांटे और बहते खून पर पड़ी तो उन्होंने घबराते हुए बैलों को रोका और बेटे वल्लभ भाई के पैर से कांटा निकालते हुए घाव पर पत्ते लगाकर खून बहने से रोका। बेटे की यह एकाग्रता और तन्मयता देखकर वे बहुत खुश हुए और जीवन में कुछ बड़ा कार्य करने का आशीर्वाद दिया।
सरदार पटेल महान देशभक्त, दूरदर्शी एवं लोकप्रिय जननेता थे। इतने लोकप्रिय कि जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक प्रधानमंत्री के चुनाव के लिये बुलाई गई थी तब सारे मत सरदार पटेल के पक्ष में ही पड़े थे I मात्र एक नेहरू जी ने अपने लिये वोट डाला था पर गांधी जी ने सबके सामने सरदार पटेल को बुलाकर नेहरू जी का नाम प्रस्तावित करने को कहा था जो उन्होंने किया I उनके लिए राष्ट्रीय एकता और सद्भावना को सर्वोपरि रही। उन्होंने छोटी-छोटी रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर आधुनिक भारत का निर्माण किया। भारत की स्वतंत्रता के बाद 500 से अधिक रियासतों को एक सूत्र में पिरोना और वह भी बिना हिंसा के, यह कार्य उनके अलावा किसी और से संभव नहीं हो सकता था। केवल हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी थी।
नीतियों के प्रति अडिग रहने के कारण उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी गई। कश्मीर के भारत में विलय का विषय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने विशेषाधिकार में रखा था लेकिन जम्मू -कश्मीर की स्थिति दिनोंदिन पाकिस्तानी कबायलियों के कारण बिगड़ती जा रही थी। महाराज हरि सिंह पंडित नेहरू से अपने गंभीर मतभेदों के कारण भारत के साथ आने से हिचक रहे थे और पाकिस्तान में विलय को लेकर वे आश्वस्त नहीं थे क्योंकि जिन्ना के साथ उनको अपना भविष्य नहीं दिख रहा था।
सरदार पटेल को मालूम था कि कश्मीर यदि भारत का अंग नहीं बना तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सदैव संकट बना रहेगा। कश्मीर के भारत में विलय हेतु उन्होने महाराजा हरि सिंह के दीवान मेहरचंद महाजन से संपर्क किया तो उनको ज्ञात हुआ कि महाराजा हरि सिंह को मनाने की क्षमता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति में नहीं है। तब गृहमंत्री सरदार पटेल ने श्री गुरूजी से अनुरोध किया कि राष्ट्रहित में उनको अपने प्रभाव का उपयोग करना चाहिए।श्री गुरूजी ने उनके अनुरोध को मान देते हुए अपने सभी पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया और वे कश्मीर गए। गुरूजी ने ‘विलय हेतु सहमति’ की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिल्ली में १९ अक्टूबर को दी एवं २६ अक्टूबर को कश्मीर का भारत में विलय हो गया।
उन्होंने जिस प्रकार से आजादी के बाद देश में मौजूद चुनौतियों का सामना करके राष्ट्र की एकता में अहम भूमिका निभाई उसके लिए देश हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा। उनका अनुकरणीय व्यक्तित्व हमें बताता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, लौह नेतृत्व और अदम्य राष्ट्रप्रेम से देश के भीतर की सभी विविधताओं को एकता में बदलकर एक अखण्ड राष्ट्र का स्वरूप दे सकता है।



