लोकसभा में आज ‘वंदे मातरम्’ पर 10 घंटे की विशेष चर्चा

राघवेंद्र प्रताप सिंह: पीएम मोदी सहित देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी का कहना है कि वंदेमारतम देश की राष्ट्रीय एकता का तार है जिसपर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जाना चाहिए, न ही इसका राजनीतीकरण करना चाहिए। इसी कड़ी में संसद के शीतकालीन सत्र में आज सबसे बड़ी टक्कर होने जा रही है। संसद में आज वंदे मातरम् पर महाबहस होने वाली है। बीजेपी की तरफ से खुद प्रधानमंत्री मोदी इस मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत करेंगे। वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर ये विशेष चर्चा होने जा रही है। इस मौके पर स्वतंत्रता आंदोलन में इस देशभक्ति गीत की भूमिका और भारत की सांस्कृतिक विरासत पर भी चर्चा की जाएगी।चर्चा की शुरुआत दोपहर 12 बजे पीएम मोदी करेंगे। लोकसभा में वंदे मातरम पर चर्चा के लिए 10 घंटे का वक्त तय किया गया है। इसके बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अनुराग ठाकुर सरकार की तरफ से वंदे मातरम पर पक्ष रखेंगे। वहीं, विपक्ष की ओर से गौरव गोगोई, प्रियंका वाड्रा, दीपेंद्र हुड्डा, विमल अकोइजम, प्रणिती शिंदे, प्रशांत पडोले, चमाला रेड्डी और ज्योत्सना महंत पक्ष रखेंगे। चर्चा के दौरान पीएम मोदी के उस बयान पर हंगामा होने के आसार हैं जिसमें पीएम मोदी ने कांग्रेस पर 1937 में इस गीत से प्रमुख छंदों को हटाने और विभाजन के बीज बोने का आरोप लगाया था। चर्चा के दौरान पीएम मोदी के उस बयान पर हंगामा होने के आसार हैं जिसमें पीएम मोदी ने कांग्रेस पर 1937 में इस गीत से प्रमुख छंदों को हटाने और विभाजन के बीज बोने का आरोप लगाया था। यही वजह है कि चर्चा से पहले ही कांग्रेस और बीजेपी वंदे मातरम् के मुद्दे पर आमने-सामने आ गई है। भाजपा के लोकसभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू पर पर हमला बोला है। उन्होंने कहा, ”नेहरू ने वंदे मातरम से कई लाइन हटवाई। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम समाज ‘इरिटेट’ होगा। वंदे मातरम समझने के लिए शब्दकोश की मदद लेनी पड़ी थी।”
देश के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के आज 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं। सात नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखी गई यह रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गई थी। यह गीत केवल एक कविता नहीं, बल्कि भारत की एकता, त्याग और मातृभूमि के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। इसी गीत ने आजादी के संघर्ष में लाखों देशवासियों को नई ऊर्जा दी थी।
वंदे मातरम’ को पहली बार 1875 में बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। सन् 1882 में इसे बंकिम चंद्र की प्रसिद्ध कृति आनंदमठ में शामिल किया गया। वहीं, इस गीत को संगीत में ढालने का काम रवींद्रनाथ टैगोर ने किया। 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में यह गीत पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया। सात अगस्त 1905 को इसे पहली बार राजनीतिक नारे के रूप में इस्तेमाल किया गया, जब बंगाल विभाजन के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे थे।
क्या है उपन्यास ‘आनंदमठ’
उपन्यास आनंदमठ में संन्यासियों का एक समूह ‘मां भारती’ की सेवा को अपना धर्म मानता है। उनके लिए ‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं, बल्कि पूजा का प्रतीक है। उपन्यास में मां की तीन मूर्तियां भारत के तीन स्वरूपों को दर्शाती हैं। अतीत की गौरवशाली माता, वर्तमान की पीड़ित माता और भविष्य की पुनर्जीवित माता। इस पर अरविंदो ने लिखा है कि यह मां भीख का कटोरा नहीं, बल्कि सत्तर करोड़ हाथों में तलवार लिए भारत माता है।
1950 में संविधान सभा ने सर्वसम्मति से वंदे मातरम को भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, इसे ‘जन गण मन’ के समान सम्मान दिया जाएगा। इसके बाद से यह गीत देश के गौरव, एकता और राष्ट्रभावना का प्रतीक बन गया।
इस वर्ष केंद्र सरकार पूरे भारत में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रही है। दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में राष्ट्रीय स्तर का उद्घाटन समारोह होगा। देशभर में सात नवंबर को जिला और तहसील स्तर तक विशेष आयोजन होंगे। इस अवसर पर डाक टिकट, स्मारक सिक्का और वंदे मातरम पर आधारित प्रदर्शनी भी जारी की जाएगी। साथ ही ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर इससे जुड़े विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाएंगे।
प्रतिरोध का गीत बना था ‘वंदे मातरम’ :
1905 के स्वदेशी आंदोलन में यह गीत आजादी का नारा बन गया। कोलकाता से लेकर लाहौर तक लोग सड़कों पर ‘वंदे मातरम’ के जयघोष से ब्रिटिश शासन को चुनौती देने लगे। बंगाल में बंदे मातरम एक समाज बना। इसमें रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेता भी शामिल हुए। ब्रिटिश सरकार ने जब स्कूलों और कॉलेजों में इस गीत पर रोक लगाई, तो विद्यार्थियों ने गिरफ्तारी और दंड की परवाह किए बिना इसे गाना जारी रखा। यही वह दौर था जब वंदे मातरम हर भारतीय के दिल की आवाज बन गया।



