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अक्षय नवमी को लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती

एस0एस0 नागपाल , ज्योतिषाचार्य


लखनऊ। कार्तिक शुल्क पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी, धात्री नवमी या आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष अक्षय नवमी 10 नवम्बर है नवमी तिथि 09 नवम्बर को रात्रि 10:45 से प्रारम्भ होकर 10 नवम्बर की रात्रि 09:01 तक है अक्षय नवमी पर लक्ष्मी-नारायण की भी पूजा की जाती है मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग की शुरूवात हुई थी। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करके आंवले के पेड़ की कच्चा दूध , अक्षत्र, पुष्प, चंदन ,मिठाई, धूप-दीप आदि से पूजा करते है , कच्चा धागा बांध कर सात बार परिक्रमा की जाती है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने का भी महत्व है। आंवला वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख-शान्ति, संतान सुख की प्राप्ति होती है।

आंवला भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। आंवला में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इसके सेवन से निरोग रहते है। आंवला वृक्ष के पूजन का 10 नवम्बर को शुभ मुर्हूत प्रातः 06ः22 से दिन 11ः50 तक है अक्षय नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी पर देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ ही शिव जी पूजा करना चाहती थीं। देवी लक्ष्मी ने सोचा कि विष्णु जी को तुलसी प्रिय है और शिव जी को बिल्व पत्र प्रिय है। तुलसी और बिल्व पत्र के गुण एक साथ आंवले में होते हैं। ऐसा सोचने के बाद देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को ही भगवान विष्णु और शिव जी का स्वरूप मानकर इसकी पूजा की। देवी लक्ष्मी की इस पूजा से विष्णु जी और शिव जी प्रसन्न हो गए। विष्णु जी और शिव जी देवी लक्ष्मी के सामने प्रकट हुए तो महालक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे ही विष्णु जी और शिव जी को भोजन कराया। इस कथा की वजह से ही कार्तिक शुक्ल नवमी पर आंवले की पूजा करने की और इस पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने परंपरा है एक मान्यता ये भी है कि अक्षय नवमी पर महर्षि च्यवन ने आंवले का सेवन किया था। आंवले के शुभ असर से च्यवन ऋषि फिर से जवान हो गए थे। आयुर्वेद में कई रोगों को ठीक करने के लिए आंवले का इस्तेमाल किया जाता है। आंवले का रस, चूर्ण और मुरब्बा ये सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं। आंवले के नियमित सेवन से अपच, कब्ज, गैस जैसी दिक्कतें दूर हो जाती हैं।

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