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गोपाष्टमी में गाय को श्रद्धांजलि करते हैं अर्पित

एस0एस0 नागपाल , ज्योतिषाचार्य

कार्तिक शुक्ल अष्टमी को यह पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष बार 9 नवंबर को कार्तिक शुक्ल अष्टमी गोपाष्टमी के रूप में मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि 8 नवम्बर को रात्रि मे 11 :56 से प्रारम्भ होकर 9 नवम्बर की रात्रि 10 : 45 तक है यह गायों की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित एक त्यौहार है। इस दिन, लोग गाय माता (गोधन) को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और गायों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करते हैं जिन्हें जीवन देने वाला माना जाता है। हिंदू संस्कृति में, गायों को ‘गौ माता’ कहा जाता है और उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। देवताओं की तरह उनकी पूजा की जाती है। मान्यता है की गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी माना जाता है और यह देवी पृथ्वी का एक और रूप है। गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों को एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। यह भक्तों को उनकी इच्छाओं को पूरा करने में भी मदद करता है।


पौराणिक कथा 1
जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और वे गैया चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। वह दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक कथा 2
ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचने के लिए श्री कृष्ण जी ने 7 दिन तक गोबर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊँगली से उठाये रखा, उस दिन को गोबर्धन पूजा के नाम से मनाया जाने लगा। गोपाष्टमी के दिन ही स्वर्ग के राजा इंद्र देव ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उतार कर नीचे रखा था। भगवान कृष्ण स्वयं गौ माता की सेवा करते हुए, गाय के महत्व को सभी के सामने रखा। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा।

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