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Maharashtra Politics: BMC के चुनाव में मैदान में अकेले क्यों उतरना चाहते हैं उद्धव ठाकरे, जानिए ये 5 बड़ी वजहें

बीएस राय : उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने महा विकास अघाड़ी (MVA) को बड़ा झटका दिया है. शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत के मुताबिक, आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव में शिवसेना (UBT) अकेले चुनाव लड़ेगी. पिछले पांच सालों में यह पहली बार है जब शिवसेना (UBT) कांग्रेस और NCP (शरद पवार गुट) के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। MVA का गठन 2019 में उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस के गठबंधन से हुआ था.।

BMC में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों?

BMC चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP), एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की NCP से होगा. ऐसे में सवाल उठता है कि उद्धव ठाकरे ने गठबंधन की जगह अकेले चुनाव लड़ने का रास्ता क्यों चुना है. इसके पीछे कई अहम वजहें मानी जा रही हैं. आइए जानते हैं कि शिवसेना (यूबीटी) ने बीएमसी चुनाव में “एकला चलो” की नीति क्यों अपनाई है।

शरद पवार को लेकर भ्रम की स्थिति

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। 2024 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह साफ नहीं है कि शरद पवार और अजित पवार के बीच क्या समीकरण रहेगा। राजनीतिक गलियारों में दो चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। पहली, शरद पवार और अजित पवार एक हो सकते हैं। दूसरी, एनसीपी के ज्यादातर नेता अजित पवार के साथ जा सकते हैं और शरद पवार के पास कुछ ही वरिष्ठ नेता रह सकते हैं। अगर आखिरी वक्त में एनसीपी में कोई बदलाव होता है तो इसका सीधा असर शिवसेना (यूबीटी) के प्रदर्शन पर पड़ेगा। इसलिए उद्धव ठाकरे ने जोखिम उठाने की बजाय अभी से अपनी अलग राह चुनने का फैसला किया है।

कांग्रेस का रवैया

चुनावी फैसले लेने में कांग्रेस की सुस्ती शिवसेना (यूबीटी) के लिए चिंता का विषय रही है। विधानसभा चुनाव में भी आखिरी वक्त तक सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद होता रहा। इससे दोनों पार्टियों को नुकसान हुआ और कांग्रेस सिर्फ 16 सीटों पर सिमट गई। शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे और संजय राउत पहले ही कांग्रेस की धीमी निर्णय लेने की आलोचना कर चुके हैं। हार के बाद कांग्रेस ने संगठनात्मक बदलाव की बात कही थी, लेकिन अभी तक उस पर अमल नहीं हुआ है। इसी वजह से उद्धव ने बीएमसी में अपनी रणनीति को स्वतंत्र रूप से लागू करने का फैसला किया है।

बीएमसी में सीट शेयरिंग की चुनौती

शिवसेना 1995 से बृहन्मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा जमाए हुए है। हालांकि पार्टी में फूट के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे का मजबूत जनाधार बरकरार है। बीएमसी की 236 सीटों में से पिछली बार उद्धव की पार्टी ने 84 सीटें जीती थीं। अगर एमवीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाता तो सीट शेयरिंग का मुद्दा बड़ा मुद्दा बन सकता था। सीट शेयरिंग की वजह से कई मजबूत दावेदारों को टिकट नहीं मिल पाता और वे भाजपा या एकनाथ शिंदे की पार्टी में जा सकते थे। यही वजह है कि उद्धव ने बीएमसी की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया।

हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की रणनीति

शिवसेना की राजनीति मराठी मानुस और हिंदुत्व के मुद्दों पर आधारित रही है। इन मुद्दों का असर मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में दिख रहा है। महाविकास अघाड़ी में रहते हुए उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के मुद्दों पर खुलकर नहीं बोल पा रहे थे। हाल ही में बाबरी विध्वंस की बरसी पर उद्धव के करीबी मिलिंद नार्वेकर ने एक पोस्ट शेयर की थी, जिस पर कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं ने नाराजगी जताई थी। गठबंधन से अलग होकर अब उद्धव हिंदुत्व के मुद्दों को धार देने की कोशिश करेंगे।

भविष्य की राजनीति के लिए आजादी

उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा था कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है। बीएमसी में अकेले लड़कर शिवसेना (यूबीटी) भविष्य की राजनीति के लिए अपने विकल्प खुले रखना चाहती है। अगर बीएमसी में शिवसेना (यूबीटी) का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो पार्टी किसी राजनीतिक दल के साथ नए गठबंधन पर विचार कर सकती है। उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस के बीच हाल के दिनों में मुलाकातें हुई हैं। इसके बाद बीजेपी और उद्धव की शिवसेना के बीच गठबंधन की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। अकेले चुनाव लड़ने का फैसला शिवसेना (यूबीटी) को भविष्य में राजनीतिक फैसले लेने की आजादी भी देगा।

दरअसल, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का फैसला कई राजनीतिक और रणनीतिक पहलुओं से जुड़ा है। शरद पवार के रुख को लेकर अनिश्चितता, कांग्रेस का सुस्त रवैया और हिंदुत्व के मुद्दे पर खुलकर राजनीति करने की जरूरत ने उद्धव को यह कदम उठाने पर मजबूर किया है। उद्धव ठाकरे का यह फैसला मुंबई की राजनीति और आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभा सकता है। बीएमसी चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि उद्धव का यह फैसला कितना कारगर साबित होता है।

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