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Mahakumbh Prayagraj 2025: सनातन संस्कृति का जयघोष, हर हर महादेव, जय श्रीराम के नारों से गूंजा तीर्थराज प्रयाग

बीएस राय: मकर संक्रांति के अवसर पर मंगलवार को अखाड़ों ने महाकुंभ मेले का अमृत स्नान किया। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा मकर संक्रांति पर सबसे पहले अमृत स्नान करने वाले अखाड़े रहे। पहला अमृत स्नान कई मायनों में खास है। यह पौष पूर्णिमा के अवसर पर संगम क्षेत्र में सोमवार को पहले प्रमुख स्नान के एक दिन बाद हुआ। 12 किलोमीटर क्षेत्र में फैले स्नान घाटों पर हर हर महादेव और जय श्री राम के जयघोष सुनाई दिए। साधुओं के अमृत स्नान के साथ ही आम श्रद्धालुओं ने भी अपनी आस्था की डुबकी लगाई।

संगम के आसपास गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ चारों ओर से देखी गई। इस दौरान सभी ने हर हर महादेव और जय श्री राम के नारों से संगम क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया। महाकुंभ में विभिन्न संप्रदायों के संतों के तेरह अखाड़े भाग ले रहे हैं। ठंड के मौसम में बर्फीले पानी के बावजूद समूहों में स्नान क्षेत्र की ओर बढ़ते भक्तों के बीच ‘हर हर महादेव’, ‘जय श्री राम’ और ‘जय गंगा मैया’ के नारे सुने जा सकते थे।

महाकुंभ मेला प्रशासन ने मकर संक्रांति और बसंत पंचमी पर सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के ‘अमृत स्नान’ की तिथि, क्रम और समय के बारे में एक आदेश जारी किया है, उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को एक बयान में कहा। अखाड़ों को ‘अमृत स्नान’ की तिथियों और उनके स्नान क्रम के बारे में जानकारी मिल गई है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने पहले पीटीआई को बताया कि इस महाकुंभ का पहला ‘अमृत स्नान’ मंगलवार सुबह 5.30 बजे शुरू होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि कुंभ से जुड़े ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ जैसे सामान्य शब्दों को बदलकर क्रमशः ‘अमृत स्नान’ और ‘छावनी प्रवेश’ कर दिया गया है। जब उनसे पूछा गया कि उन्हें ये शब्द क्यों गढ़ने पड़े, तो महंत पुरी, जो हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, “हम सभी हिंदी और उर्दू में शब्द बोलते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कोई उर्दू शब्द न बोलें।”

उन्होंने कहा, “लेकिन हमने सोचा कि जब हमारे देवताओं की बात आती है, तो हमें संस्कृत भाषा में नाम रखने या ‘सनातनी’ नाम रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारा इरादा इसे हिंदू बनाम मुस्लिम नहीं बनाना है।” प्रयागराज स्थित राम नाम बैंक (एक गैर सरकारी संगठन) के संयोजक आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार, अयोध्या में भगवान राम लला की भव्य प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह अमृत स्नान पहला ऐसा स्नान होगा।

वार्ष्णेय ने कहा, “यह एक दिव्य संयोग है कि महाकुंभ में दो स्नान लगातार दिन हैं। ‘पौष पूर्णिमा’ का प्रमुख स्नान सोमवार को था, जबकि मकर संक्रांति मंगलवार को है।” उन्होंने कहा, “इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु, संत और आम लोग पहले ही पवित्र शहर प्रयागराज में आ चुके हैं।”

कुंभ का वर्तमान संस्करण 12 वर्षों के बाद आयोजित किया जा रहा है, हालांकि संतों का दावा है कि इस आयोजन के लिए खगोलीय परिवर्तन और संयोजन 144 वर्षों के बाद हो रहे हैं, जिससे यह अवसर और भी शुभ हो गया है।

तीर्थराज प्रयागराज में जब उजाले की एक किरण तक नहीं निकली थी, हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच मकर संक्रांति के पावन पर्व पर महाकुम्भ नगर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। अमृत स्नान के लिए देश-विदेश से करोड़ों लोग गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर पहुंचे। पवित्र स्नान का यह दृश्य भारतीय संस्कृति और परंपरा की गहराई को दर्शाता नजर आ रहा था। ब्रह्म मुहूर्त में ही लोगों ने पतित पावनी गंगा और संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाकर सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की।

पंचायती निर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने भाला, त्रिशूल और तलवारों के साथ अपने शाही स्वरूप में अमृत स्नान किया। साधु-संत घोड़े और रथों पर सवार होकर शोभायात्रा में शामिल हुए, जिससे पूरे क्षेत्र में भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हो गया। उनके साथ चल रही भजन मंडलियों और श्रद्धालुओं के जयघोष ने माहौल को और दिव्य बना दिया।

नागवासुकी मंदिर और संगम क्षेत्र में तड़के से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया। बुजुर्ग, महिलाएं और युवा, सभी अपने सिर पर गठरी लादे आस्था से भरे हुए संगम की ओर बढ़ते दिखे। स्नान के लिए श्रद्धा ऐसी थी कि लोग रात से ही गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाना शुरू कर चुके थे।

महाकुम्भ नगर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए। हर मार्ग पर बैरिकेडिंग लगाकर वाहनों की गहन जांच की गई। चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती से पूरा आयोजन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रहा। डीआईजी कुम्भ मेला वैभव कृष्ण, एसएसपी राजेश द्विवेदी समेत पुलिस टीम ने घोड़े के साथ मेला क्षेत्र में पैदल मार्च किया और अमृत स्नान जा रहे अखाड़ा साधुओं का मार्ग प्रशस्त किया।

नागवासुकी मंदिर और संगम क्षेत्र में तड़के से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया। बुजुर्ग, महिलाएं और युवा, सभी अपने सिर पर गठरी लादे आस्था से भरे हुए संगम की ओर बढ़ते दिखे। स्नान के लिए श्रद्धा ऐसी थी कि लोग रात से ही गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाना शुरू कर चुके थे।

महाकुम्भ नगर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए। हर मार्ग पर बैरिकेडिंग लगाकर वाहनों की गहन जांच की गई। चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती से पूरा आयोजन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रहा। डीआईजी कुम्भ मेला वैभव कृष्ण, एसएसपी राजेश द्विवेदी समेत पुलिस टीम ने घोड़े के साथ मेला क्षेत्र में पैदल मार्च किया और अमृत स्नान जा रहे अखाड़ा साधुओं का मार्ग प्रशस्त किया।

महाकुम्भ के पावन अवसर पर त्रिवेणी संगम तट पर आस्था और दिव्यता का अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा है। एक ओर अखाड़े के साधु-संत अपने विशिष्ट अंदाज में स्नान कर रहे हैं, तो दूसरी ओर हजारों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पवित्र डुबकी लगाते नजर आए। संगम तट पर ऐसे अनगिनत दृश्य देखने को मिले, जहां पिता अपने पुत्र को कंधे पर बिठाकर स्नान करा रहे थे। वहीं, कुछ स्थानों पर वृद्ध पिता को उनका पुत्र स्नान कराने लाया था। ये नजारे रिश्तों की गहराई और भारतीय संस्कृति के पारिवारिक मूल्यों की झलक पेश करते हैं।

महाकुम्भ के इस पावन अवसर पर रात और दिन का कोई भेद नहीं रह गया है। पूरी रात श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा। चहल-पहल से गूंजते संगम तट पर हर व्यक्ति अपने हिस्से की आस्था और दिव्यता को आत्मसात करने में लीन दिखा। भारत की असंख्य विविधताओं के बीच अद्भुत एकता दिखाई दे रही है। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु अपनी परंपराओं, भाषाओं और वेशभूषाओं के साथ एक ही उद्देश्य से संगम पर पहुंचे हैं और वो है पवित्र स्नान और आध्यात्मिक अनुभव।

महाकुंभ के अद्वितीय आयोजन में भगवा और तिरंगे का संगम भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक बन गया है। संगम तट पर सनातन परंपरा का प्रतिनिधित्व करते भगवा ध्वज जहां धर्म और आस्था की गहराई को दर्शाते हैं, वहीं भारत की एकता और अखंडता का परिचायक तिरंगा भी शान से लहराता नजर आया। मंगलवार को तिरंगे ने कई अखाड़ों की राजसी शोभायात्रा का हिस्सा बनकर महाकुंभ के इस दिव्य आयोजन में गौरव का एक नया आयाम जोड़ा। यह दृश्य न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को जागृत करता है, बल्कि भारत की विविधता में एकता को भी खूबसूरती से दर्शाता है।

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा अलौकिक अनुभव है, जो कण-कण में दिव्यता का आभास कराता है। यह उत्सव केवल आंखों से देखा ही नहीं, बल्कि दिल से महसूस किया जाता है। महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई और समाज की सामूहिकता को भी दर्शाता है। यह उत्सव हर किसी के लिए एक अद्वितीय अनुभव और आत्मा को शांति प्रदान करने का माध्यम है।

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