मित्रता की परिधि
विजय गर्ग
मित्रता एक ऐसा विषय है, जो इस समाज के लिए सबसे ज्यादा विचार का मामला रहा है और यह ऐसा विषय भी रहा है, जिस पर सबसे ज्यादा लिखा गया है। फिर भी समय के साथ इसके अलग- अलग रूप का सामना करते हुए इस पर विचार करने, सोचने का आग्रह कई बार हावी हो जाता है। दरअसल, मित्रता मानव जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान धरोहरों में से एक है। यह केवल सामाजिक संबंधों का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मानसिक संतुलन, भावनात्मक स्थिरता और आत्मीयता के अद्वितीय अनुभवों का स्रोत भी है । मित्रता विश्वास, समर्पण और निश्छल प्रेम की डोर से बंधी होती है, जो जीवन को एक नया अर्थ और उद्देश्य दे जाती है। इसके अभाव में मनुष्य मानसिक और भावनात्मक रूप से अस्थिर हो सकता है, क्योंकि यह जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती है, जिन्हें अन्य किसी भी संबंध में पूरी तरह से व्यक्त नहीं किया जा सकता।
इस संदर्भ में यह टिप्पणी अहम है कि मित्रता की परीक्षा विपत्ति में दी गई मदद से होती है और वह मदद निस्वार्थ होनी चाहिए। यह कथन मित्रता के वास्तविक स्वरूप को उजागर करता है । विपत्ति के क्षणों में, जब जीवन अंधकारमय और निराशाजनक प्रतीत होता है, एक सच्चा मित्र आशा की किरण बनकर सामने आता है । वह तन, मन और धन से अपने मित्र की सहायता करता है और उसे विपत्ति के गहरे गर्त से बाहर निकालता है। ऐसी स्थिति में मित्रता का वास्तविक मूल्य और उसकी गहनता स्पष्ट रूप से सामने आती है।
हालांकि, मित्रता को निभाना जितना कठिन है, उतना ही यह भी सत्य है कि वर्तमान समय में मित्रता का अर्थ और उद्देश्य बदलता जा रहा है। दरअसल, आजकल कई मामलों में यह देखा जा सकता है कि मित्रता का उपयोग केवल स्वार्थ साधने के लिए किया जाता है। लोग केवल अपने हितों को साधने का प्रयास करते हैं और समय पड़ने पर साथ छोड़ देते हैं । ऐसे में मित्रता की वास्तविकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो जाता है। अरस्तू ने सही ही कहा है कि ‘मित्रों के बिना कोई भी जीना पसंद नहीं करेगा, चाहे उसके पास बाकी सब अच्छी चीजें क्यों न हों।’ सच यह है कि मित्र जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो इसकी समृद्धि और संपन्नता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हम सभी अपने जीवन में एक ऐसे सच्चे और अच्छे मित्र की तलाश में रहते हैं, जो हमारे जीवन के कठिन समय में हमारा साथ दे, हमारी बातों को समझे और हमारे सुख-दुख में समान रूप से भागीदार बने । यह वह संजीवनी है, जो हमें सभी रिश्तों और संकोच से ऊपर उठाकर अपने मित्र के साथ अपने विचारों और भावनाओं को साझा करने की स्वतंत्रता देती है । वह, जो हमें सही दिशा दिखाए, न कि हर परिस्थिति में हमारा साथ देने के नाम पर हमारी गलतियों को अनदेखा करे । मित्रता का असली मापदंड यही है कि हमारा मित्र हमें अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करे और गलतियों पर हमें सही दिशा दिखाए ।
संगति का प्रभाव व्यक्ति के गुणों और उसके चरित्र पर गहरा प्रभाव डालता | अच्छी संगति से व्यक्ति के गुणों में निखार आता है, जबकि बुरी संगति से वे गुण नष्ट हो जाते हैं। इसलिए, जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किसी को भी अच्छी संगति का चयन करना चाहिए। यह जगजाहिर तथ्य कि मित्रता का व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता यह न केवल हमारे चरित्र को निखारती है, बल्कि हमारे जीवन के निर्णयों और सोचने के तरीके को भी प्रभावित करती है। जैसे सुगंधित वस्त्रों से सज्जित शरीर, वैसे ही उत्तम मित्रता से सजा हुआ मनुष्य का व्यक्तित्व । इसके विपरीत, बुरी संगति मनुष्य को पतन की ओर धकेल सकती है । इसीलिए यह जरूरी है कि हम अपने मित्रों का चयन अत्यंत सावधानी और विवेकपूर्वक करें, ताकि उनकी संगति से हमारे व्यक्तित्व को निखार मिले और हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आए ।
मित्रता का मूल्यांकन केवल इसके स्थायित्व और समर्थन में नही’ है, बल्कि इसमें भी है कि यह हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उन्हें सही तरीके से अपनाने में मदद करती है । मित्रता का असली स्वरूप तब प्रकट होता है, जब हम अपने मित्रों के साथ मिलकर जीवन की चुनौतियों का सामना करते हैं, उनसे सीखते हैं और एक दूसरे के जीवन को समृद्ध करते हैं। यह प्रक्रिया हमें न केवल व्यक्तिगत रूप से विकसित करती है, बल्कि हमें सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध बनाती है। सच यह है कि मित्रता का मूल्यांकन उसके प्रभाव, योगदान और समर्थन के आधार पर किया जाना चाहिए। यह जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती है, जिन्हें अन्य किसी भी संबंध में पूरी तरह से व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसका सही अर्थ तभी समझा जा सकता है जब हम इसे अपने जीवन में पूर्ण रूप से अपनाते हैं और इसे अपनी सोच, विचारधारा और कार्यों में अभिव्यक्त करते हैं।
मुश्किल यह है कि आज तेज रफ्तार से भागती-दौड़ती जिंदगी में मित्रता को भी सतही अर्थों में लिया जाने लगा है। ऐसे उदाहरण हमारे आसपास बिखरे पड़े होंगे, जिनमें कोई व्यक्ति मित्रता के नाम पर महज काम का संबंध निभाता है और मित्र की जरूरत के वक्त किसी भी तरह की जिम्मेदारी निभाने से मुकर जाता है। भावनाओं से रिक्त संबंधों को जान-पहचान के तौर पर भले देखा जाए, उसे मित्रता नहीं कहा जा सकता ।