Maharashtra Politics: ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे पर NDA में ही घमासान, जानिए क्यों भिड़े देवेंद्र फडणवीस: अजित पवार

बीएस राय: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सभी दलों ने अपनी अपनी ताकत झोंक रखी है। लेकिन सबसे दिलचस्प यह है कि महाराष्ट्र विधाानसभा चुनाव में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे ने एनडीए में ही विवाद पैदा कर दिया है। अजित पवार ने इस नारे को महाराष्ट्र के लिए अनुचित करार दिया है। जैसे ही अजित का यह बयान सामने आया बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पलटवार करते हुए अजित पर हिन्दू विरोधी विचार धाराओं का समर्थन करने का आरोप लगा दिया। बीजेपी के अन्य नेता भ्ज्ञी इस नारे का विरोध कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे ने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में दरार पैदा कर दी है। एनडीए के दोनों प्रमुख चेहरे अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस इस नारे पर अलग-अलग रुख अपनाते नजर आ रहे हैं। अजित पवार ने नारे की कड़ी आलोचना की, जिसके जवाब में फडणवीस ने उन पर तीखे शब्दों में हमला बोला।
हाल ही में एक इंटरव्यू में देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि दशकों से अजित पवार ने हिंदू विरोधी विचारधाराओं का समर्थन किया है और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुत्व की आलोचना की है। फडणवीस के मुताबिक पवार शायद अभी भी महाराष्ट्र के लोगों की सोच और मौजूदा राजनीतिक माहौल को ठीक से समझ नहीं पाए हैं। उन्होंने यह भी इशारा किया कि अजित पवार शायद अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाए हैं, या फिर उन्हें जनता की भावनाओं का अंदाजा नहीं है।
अजित पवार ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे की आलोचना की और इसे महाराष्ट्र की राजनीति के लिए अनुपयुक्त बताया। पवार ने कहा कि एनडीए का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ होना चाहिए न कि यह नारा जो बांटने की बात करता है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र का राजनीतिक मिजाज उत्तर प्रदेश जैसा नहीं है और यहां के लोग ऐसी संकीर्ण राजनीति पसंद नहीं करते।
अजित के अनुसार महाराष्ट्र के लोग समझदार हैं और इस तरह के नारे राज्य की राजनीति के लिए अनुपयुक्त हैं। अजित पवार के साथ ही वरिष्ठ भाजपा नेता पंकजा मुंडे और कांग्रेस से आए भाजपा नेता अशोक चव्हाण ने भी इस नारे का विरोध किया है। पंकजा मुंडे जो विधान परिषद की सदस्य हैं और अशोक चव्हाण जो राज्यसभा सांसद हैं, ने सार्वजनिक रूप से इस नारे को गलत बताया है।
महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है और ऐसे में एनडीए गठबंधन के भीतर इस मुद्दे पर अलग-अलग राय जनता के बीच भ्रम पैदा कर सकती है। जब एनडीए को चुनावी मैदान में एकजुट होकर जनता के सामने आना चाहिए था, तब ऐसे मुद्दों पर आपसी विरोध न केवल गठबंधन की एकता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि विपक्षी दलों के लिए यह एक अवसर भी बनता दिख रहा है।
यह नारा और इस पर विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। देवेंद्र फडणवीस इसे जनता के मूड से जोड़ते हैं, तो अजित पवार इसे राज्य के सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ मानते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नारे का एनडीए की एकता और चुनाव नतीजों पर क्या असर होगा।



