मीडिया के भारतीयकरण से होगा मूल्यनिष्ठ समाज का निर्माण : प्रो. संजय द्विवेदी
नई दिल्ली। ”जब हम आध्यात्म से जुड़ते हैं, तो स्वार्थ से दूर हो जाते हैं और ऐसी मूल्य आधारित जीवनशैली हमें मनुष्यता के करीब ले जाती है। लेकिन भारतीय मीडिया पर विदेशी मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण नकारात्मकता को भी मूल्य माना जा रहा है। मीडिया के भारतीयकरण से ही इसमें सकारात्मक मूल्यों का समावेश होगा और मूल्यनिष्ठ समाज का निर्माण संभव हो पाएगा।” यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने रविवार को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा ‘मूल्य आधारित समाज के निर्माण में शिक्षकों व पत्रकारों की भूमिका’ विषय पर आयोजित सेमिनार में व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर अपनी बात रखते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि मीडिया का मूल्यबोध भी वही है, जो समाज का मूल्यबोध है। समाज को भी स्वस्थ, प्रामाणिक और पारदर्शी होने की दरकार है। ऐसा समाज ही मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकता है और विश्व का नेतृत्व कर सकता है।
आयोजन के विशिष्ट अतिथि के तौर पर विचार व्यक्त करते हुए ‘न्यूज़ 24’ चैनल की निदेशक अनुराधा प्रसाद ने कहा कि मीडिया ने ही संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में जोड़ रखा है। आज समाज में सबसे ज्यादा जरुरत सकारात्मक संवाद की है। सोशल मीडिया में लाइक और डिसलाइक के आंकड़े के पीछे मीडिया मूल्यों से समझौता हो रहा है। इसे रोकने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य संयोजिका ब्रह्माकुमारी सरोज ने बताया कि बाह्य परिवर्तन से पहले आंतरिक परिवर्तन जरूरी है और पहले स्वयं में मूल्यों के आधार पर परिवर्तन लाना होगा, तभी समाज, देश और विश्व में परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा की सभी मूल्यों का मूल उद्देश्य मानव जीवन व समाज में सुख, शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता जैसे गुण और शक्तियों की पुनः स्थापना है।
ओमशांति रिट्रीट सेंटर, गुरुग्राम की निदेशक ब्रह्माकुमारी आशा ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि आज सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि क्या हम शिक्षकों द्वारा दिए गए मूल्यों को आगे लेकर जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि जब हम ‘बदला न लो बदल कर दिखाओ’, ‘न दुःख दो न दुःख लो’, ‘सुख दो सुख लो’, ‘सर्व के प्रति शुभ भावना और कामना रखो’ जैसे मूलभूत सिद्धांतों स्वयं में धारण करेंगे, तो हमे देख अन्य लोग भी ऐसा करने लगेंगे। इसी को आचरण द्वारा शिक्षा देना कहा जाता है।
कार्यक्रम के मध्य में उपस्थित लोगों को सामूहिक राजयोग ध्यान का अभ्यास कराया गया। आयोजन में वरिष्ठ शिक्षाविदों एवं पत्रकारों ने अपनी अनुभव साझा किए।