विधानसभा चुनाव से पहले ही गरमा रही दिल्ली की राजनीतिक फिजां, जानिए कैसे

बीएस राय : दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक बार फिर केंद्र सरकार और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं को निशाना बनाने के लिए फर्जी मुकदमे और छापेमारी की योजना बनाई जा रही है।
अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि आने वाले दिनों में दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी और पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। उन्होंने मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई छापेमारी की भी संभावना जताई। यह बयान ऐसे समय में आया है जब दिल्ली सरकार की कई योजनाओं जैसे महिला सम्मान योजना और संजीवनी योजना को लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच लगातार टकराव चल रहा है।
केजरीवाल का कहना है कि भाजपा दिल्ली में अपनी संभावित चुनावी हार से घबरा गई है। उनका दावा है कि अपनी घबराहट के कारण भाजपा विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। इससे पहले भी आबकारी घोटाला मामले में आम आदमी पार्टी के कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन कई मामलों में अदालतों ने जमानत दे दी थी।
फर्जी वोटर लिस्ट को लेकर एक और विवाद खड़ा हो गया है। अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री आतिशी ने आरोप लगाया है कि नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर फर्जी मतदाताओं के नाम जोड़े और हटाए जा रहे हैं। वहीं, भाजपा का कहना है कि आम आदमी पार्टी ने कुछ सीटों पर ऐसे लोगों के नाम दर्ज किए हैं, जो दिल्ली के निवासी ही नहीं हैं।
यह मुद्दा तब और गरमा गया जब भाजपा ने सवाल उठाया कि विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं की संख्या क्यों बढ़ जाती है, जबकि लोकसभा चुनाव में ऐसा कोई रुझान नहीं दिखता। इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच तनातनी ने दिल्ली की राजनीति को और पेचीदा बना दिया है।
अरविंद केजरीवाल के हालिया बयान और आरोप-प्रत्यारोप न सिर्फ दिल्ली की राजनीति को गरमा रहे हैं, बल्कि देशभर में विपक्षी राजनीति की आवाज को भी मजबूत कर रहे हैं। इन दावों में कितनी सच्चाई है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन यह साफ है कि आने वाले चुनावी माहौल में राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा और भी तेज होने वाली है। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली की राजनीति अब विकास योजनाओं और मुद्दों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अब यह सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरे वैचारिक संघर्ष का मैदान बन गई है।