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USAID Projects / डोनाल्ड ट्रंप ने USAID पर कसा शिकंजा, भारत को होगा क्या नुकसान?

बीएस राय: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने तेजतर्रार और अप्रत्याशित फैसलों के लिए जाने जाते हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने प्रवासियों पर सख्ती, वैश्विक टैरिफ और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग में कटौती समेत कई बड़े फैसले लिए हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अमेरिका की सबसे बड़ी विकास सहायता एजेंसी यूएसएआईडी (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) की फंडिंग की समीक्षा करने का फैसला किया है।

यह फैसला भारत समेत कई विकासशील देशों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। यूएसएआईडी के सहयोग से भारत में कई स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और महिला सशक्तिकरण योजनाएं चलाई जाती रही हैं। इस फंडिंग में कटौती से इन कार्यक्रमों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिसका असर लाखों लोगों के जीवन पर पड़ेगा। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

यूएसएआईडी अमेरिका की एक सरकारी एजेंसी है, जो दुनियाभर के विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता मुहैया कराती है। इसका मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना है। यूएसएआईडी भारत में दशकों से सक्रिय है और इसके सहयोग से कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी खर्च में कटौती की रणनीति अपनाई है, जिसमें यूएसएआईडी फंडिंग में कटौती भी शामिल है। इसका सीधा असर भारत में चल रहे विकास कार्यों पर पड़ेगा:

यूएसएआईडी भारत में कई स्वास्थ्य योजनाओं को फंड करता रहा है। अगर यह मदद बंद हो जाती है, तो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और संक्रामक रोगों की रोकथाम से जुड़े कार्यक्रम, खासकर ग्रामीण इलाकों में, प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकते हैं। यूएसएआईडी भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कई गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की मदद करता है। फंडिंग में कटौती से इन योजनाओं पर असर पड़ सकता है, जिससे लाखों लड़कियों की शिक्षा बाधित हो सकती है।

USAID भारत में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कई परियोजनाओं का समर्थन करता रहा है। लेकिन फंडिंग में कटौती के कारण सौर ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा और अन्य पर्यावरणीय पहल प्रभावित हो सकती हैं। गैर-सरकारी संगठन (NGO) सीधे प्रभावित होंगे: भारत में विदेशी फंडिंग को लेकर FCRA (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) के नियम पहले ही कड़े किए जा चुके हैं।

अब USAID द्वारा संभावित फंडिंग कटौती के कारण कई NGO को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनके कामकाज में बाधा आ सकती है। ट्रंप प्रशासन को USAID से क्यों है परेशानी? ट्रंप प्रशासन का कहना है कि अमेरिका को फिजूलखर्ची कम करनी होगी। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वह “बड़े सरकारी ढांचे” को छोटा करना चाहते हैं और अनावश्यक खर्चों पर लगाम लगाना चाहते हैं।

इस रणनीति के तहत उन्होंने USAID को विदेश विभाग में विलय करने की योजना बनाई है, जिससे इसके बजट और कर्मचारियों में भारी कटौती होगी। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने सरकारी खर्च कम करने की जिम्मेदारी अरबपति एलन मस्क को दी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मस्क ने संघीय सरकार के बजट में 2 ट्रिलियन डॉलर की कटौती करने का वादा किया है। यही वजह है कि USAID जैसी एजेंसियां उनकी प्राथमिकता नहीं हैं।

भविष्य की संभावनाएं यूएसएआईडी फंडिंग में कटौती का असर भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ सकता है। भारत फिलहाल अपनी स्वास्थ्य और शिक्षा योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए दूसरे स्रोतों से फंडिंग की तलाश कर सकता है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि फंडिंग पूरी तरह से बंद होगी या कुछ क्षेत्रों तक सीमित रहेगी।

ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से भारत के विकास कार्यों पर असर पड़ सकता है, खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण से जुड़े क्षेत्रों में। अगर यूएसएआईडी फंडिंग में कटौती होती है तो सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को वैकल्पिक स्रोतों से वित्तीय सहायता जुटानी होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस चुनौती से कैसे निपटता है और क्या अमेरिका अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा।

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