दीपावली का सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक महत्व
दीपावली अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है- दीपों की पंक्तियां। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ से हुई है। यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली एक दिवसीय त्यौहार नहीं है। इसमें कई त्यौहार सम्मिलित हैं, जो एक-दूसरे से संबद्ध हैं जैसे धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भैया दूज। इसीलिए इसे दीपावली महोत्सव अर्थात दीपोत्सव भी कहा जाता है। यह महोत्सव भारत सहित विश्व के हिंदू बहुल क्षेत्रों में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। धनतेरस के दिन धातु की वस्तु क्रय करना अति शुभ माना जाता है। इस दिन तुलसी या गृह के द्वार पर दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा के लिए दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से गृह धन-धान्य एवं समृद्धि से भरा रहता है। गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय एवं बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। इसीलिए इसे गोवर्धन पूजा कहा जाता है। भैया दूज पर बहन अपने भ्राता के माथे पर तिलक लगाकर उसके लिए मंगलकामना करती है। इस दिन यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा भी प्राचीन काल से चली आ रही है। माना जाता है कि ऐसा करने से सभी पापों का नाश होता है तथा पुण्य की प्राप्ति होती है।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
दीपावली का संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से भी है। रामायण के अनुसार दीपावली के दिन श्रीरामचंद्र चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अपने राज्य अयोध्या लौटे थे। उन्होंने लंका नरेश रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता को स्वतंत्र करवाया था। उनके परिवारजनों एवं प्रजा के लिए यह दोहरी प्रसन्नता का विषय था। इसलिए उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीप प्रज्ज्वलित करके अपनी प्रसन्नता एवं श्रद्धा व्यक्त की थी। तभी से दीपावली का त्यौहार मनाया जा रहा है। महाभारत के अनुसार दीपावली के दिन ही बारह वर्षों के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात पांडव हस्तिनापुर वापस आए थे। यह भी मान्यता है कि दीपावली का त्यौहार भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी से संबंधित है। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं एवं राक्षसों द्वारा समुद्र मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से प्रारंभ होता है। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में देवी लक्ष्मी भी एक थीं। इनका प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या देवी लक्ष्मी के पूजन का त्यौहार बन गई। इसीलिए दीपावली पर देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। दीपावली की रात्रि को देवी लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में भगवान विष्णु का वरण किया था। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं। जो लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं, उन पर देवी की विशेष कृपा होती है। इस दिन लोग लक्ष्मी के साथ-साथ शिव-पार्वती पुत्र गणेश, विद्या की देवी सरस्वती एवं धन के देवता कुबेर की भी पूजा-अर्चना करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन में वृद्धि होगी तथा उसका सदुपयोग होगा। यह भी मान्यता है कि दीपावली के दिन भगवान विष्णु अपने बैकुंठ धाम में वापस आए थे तथा बैकुंठ में हर्षोल्लास छा गया था।
दीपावली का त्यौहार श्रीकृष्ण से भी संबद्ध है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नरकासुर का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्त करवाया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात धन्वंतरि प्रकट हुए। वे भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माने जाते हैं। वे आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं।
दीपावली का त्यौहार देशभर में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में दीपावली काली पूजा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन यहां के हिंदू देवी काली की पूजा-अर्चना करते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा एवं उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा पर्व माना जाता है। इसलिए यहां गोवर्धन पूजा या अन्नकूट ला विशेष महत्व है। इस दिन श्रीकृष्ण के लिए छप्पन या एक सौ आठ स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। सभी व्यंजन शुद्ध भारतीय होते हैं।
ऐतिहासिक एवं सामाजिक महत्व
दीपावली का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। कई महापुरुषों से भी दीपावली का संबंध है। स्वामी रामतीर्थ का जन्म एवं महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। उन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय समाधि ली थी। आर्य समाज के संस्थापाक महर्षि दयानंद ने दीपावली के दिन अवसान लिया था। जैन एवं सिख समुदाय के लोगों के लिए भी दीपावली अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन समाज के लोग दीपावली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म के मतानुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म के मतानुसार लक्ष्मी का अर्थ है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ है ज्ञान। इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाया जाता है। सिख समुदाय के लिए दीपावली का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। दीपावली के दिन ही सिखों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
वास्तव में दीपावली एक प्रकार से सामाजिक त्यौहार है, क्योंकि समाज के विभिन्न संप्रदायों के लिए इसका भिन्न-भिन्न महत्व है। जो लोग इस त्यौहार को मनाते हैं, उनके लिए इसका धार्मिक महत्व है। किंतु जो लोग व्यापार आदि से जुड़े हैं, उनके लिए इसका आर्थिक महत्व है।
स्वच्छता एवं साज-सज्जा
दीपावली स्वच्छता एवं साज-सज्जा का भी पर्व है। दीपावली से पूर्व लोग अपने घरों एवं दुकानों आदि की सफाई करते हैं। घरों में मरम्मत एवं रंग आदि का कार्य कराते हैं। दीपावली वर्षा ऋतु के पश्चात आती है। वर्षा ऋतु में घरों में कीड़े-मकौड़े हो जाते हैं। इसलिए भी सफाई अति आवश्यक है। घरों में रंगोली बनाई जाती है तथा दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। घरों व अन्य भवनों को बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियों से सजाया जाता है। बच्चे एवं बड़े पटाखे छोड़ते हैं। बहुत से लोग आकाश में कंदील छोड़ते हैं।
आर्थिक महत्व
दीपावली पर खेतों में खड़ी फसल पकनी शुरू होने लगती है, जिसे देखकर किसान प्रसन्न हो उठते हैं। इस दिन व्यापारी अपना पुराना हिसाब निपटाकर नये बही खाते तैयार करते हैं। देशभर में दीपावली पर करोड़ों रुपये का व्यापार होता है। दीपावली से पूर्व बाजार सजने लगते हैं। इस समयावधि में वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, साज-सज्जा तथा पूजा-अर्चना के सामान से लेकर घर की आवश्यकता का प्रत्येक सामान सर्वाधिक क्रय होता है। इसलिए कम्पनियां सामान क्रय करने पर विशेष छूट देती हैं। इस समयावधि में खाद्य पदार्थों विशेषकर मेवा एवं मिष्ठान की भी बहुत बिक्री होती है। इस समयावधि में रोजगार में वृद्धि हो जाती है। इस समयावधि में पारंपरिक वस्तुओं जैसे मिट्टी के दीपक, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां तथा हस्तशिल्प की वस्तुओं आदि की मांग भी बहुत बढ़ जाती है। इससे इन्हें बनाने वाले कारीगरों को रोजगार उपलब्ध होता है। प्राय: दीपावली पर बिकने वाला सामान महीनों पूर्व बनना प्रारंभ हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार भी दीपावली पर लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाती है। विगत दो वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीपावली पर रोजगार मेले का आयोजन कर रहे हैं। वर्ष 2023 में उन्होंने दीपावली पर रोजगार मेले का आयोजन करके 51 हजार युवाओं को राज्य सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों में नियुक्ति दी गई थी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में ही रोजगार मेले की शुरुआत हुई थी। तब से निरंतर केंद्र और एनडीए शासित, भाजपा शासित राज्यों में रोजगार मेले का आयोजन लगातार किया जा रहा है, बार-बार किया जा रहा है। अब तक लाखों युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र दिए जा चुके हैं। इससे पूर्व वर्ष 2022 में उन्होंने दीपावली पर रोजगार मेले का आयोजन करके पहले चरण में 75 हजार लोगों को सरकारी नौकरी दी थी। इन भर्तियों के लिए रक्षा मंत्रालय, रेल मंत्रालय, गृह मंत्रालय, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, डाक विभाग, सीबीआई, कस्टम, बैंकिंग तथा सुरक्षा बलों जैसे विभागों में आवेदन आमंत्रित किए गए थे। वास्तव में यह रोजगार मेला, रोजगार सृजन को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में एक कदम है। आशा है कि रोजगार मेला, रोजगार सृजन में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा तथा युवाओं को उनके सशक्तिकरण और राष्ट्रीय विकास में भागीदारी के लिए सार्थक अवसर प्रदान करेगा।
दुख की बात है कि एक ओर जहां दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं तथा मद्यपान करते हैं। अकसर उनमें आपस में लड़ाई भी हो जाती है। कई बार हत्याएं तक हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त अत्यधिक आतिशबाजी के कारण ध्वनि एवं वायु प्रदूषण हानिकारक स्तर तक पहुंच जाता है। इससे बच्चों, वृद्धों एवं रोगियों को अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसलिए दीपावली का पावन पर्व श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाना चाहिए।
(लेखक – एसोसिएट प्रोफेसर, जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग लखनऊ विवि है ।)