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आज के दिन राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित हुए थे सचिन तेंदुलकर

90 के दशक में सचिन तेंदुलकर का खेल चरम पर था और फैंस के प्रति उनकी दीवानगी भी। यह वही दशक था जिसमें 29 अगस्त 1998 को मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

साभार : गूगल

सचिन को बनाने में गावस्कर और विव रिचर्ड्स ने जितना प्रभाव छोड़ा था, उससे कहीं ज्यादा असर छोड़ा था 1983 विश्व कप की जीत ने। वह जीत जो कपिल देव की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट इतिहास का आइकोनिक पल है। क्रिकेट की वह यात्रा शुरू हुई जिसका साक्षी पूरा भारत बना। सचिन ने एक बार बताया था एक बार क्रिकेट में भविष्य बनाना तय करने के बाद उन्होंने किसी और चीज के बारे में नहीं सोचा।

क्रिकेट में उस भगवान की तरह प्रकट हुए थे सचिन तेंदुलकर। वनडे क्रिकेट में उनका शुरू से आक्रामक अंदाज, टेस्ट क्रिकेट में गेंदों के हिसाब से उनकी धुनाई और इन सब चीजों के बाद गजब की निरंतरता। 90 के दशक में सचिन अकेले थे। जो देखते ही देखते करोड़ों भारतवासियों की उम्मीद बने। हमारे सपने उनसे जुड़ गए। वह रन बनाते तो लगता कि हम सफल हो गए। वह जीरो पर आउट होते तो ऐसा लगता जैसे हम फेल हो गए।

कई दफा सचिन के आउट होने पर टीवी बंद हो जाते थे। क्रिकेट का पर्याय सचिन थे। वह टेस्ट मैचों में मध्यक्रम पर आते थे और वनडे क्रिकेट में ओपनिंग में आकर विपक्षी गेंदबाजी को तहस-नहस कर देते थे। निरतंरता हमेशा उनके साथ थी।

तकनीक बेजोड़ थी ही और मानसिक तौर पर वह अपनी तकनीक से मजबूत थे। इस संयोजन ने उन्हें सफल बनाया। उनके आंकड़े बेमिसाल थे। ऑस्ट्रेलिया टीम के महान शेन वॉर्न को तो सचिन सपने में धुनाई करते हुए दिखाई देते थे। सर्वकालिक महानतम डोनाल्ड ब्रैडमैन को सचिन में अपना अक्स दिखाई देता था।

यह उपलब्धियां आंकी नहीं जा सकती। भावनाओं के अवॉर्ड नहीं होते। 90 के दशक में सचिन ने खेल पर जो छाप छोड़ी उसको पूरी तरह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इतना कहा जा सकता है उन्होंने अपनी ओर से जो किया वह अतुलनीय था।

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