दक्षिण एशिया के पत्रकारों और अध्येताओं ने भारत के वैश्विक नेतृत्व की जरूरत को रेखांकित किया

  • कम्युनिकेशन का काम है लोगों जोड़नाः प्रो.संजय द्विवेदी
  • गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय और सार्क जर्नलिस्ट फोरम के संयुक्त तत्वावधान  में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने अपने विचार अभिव्यक्त किए

ग्रेटर नोएडा: सार्क जर्नलिस्ट फोरम(एसआरएफ) ने अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों की दुखद स्थिति के प्रति चिंता व्यक्त की है। फोरम के प्रतिनिधियों ने कहा कि भारत को पूरे दक्षिण एशिया और विश्व भर के शांति स्थापना प्रयासों का नेतृत्व करना चाहिए। ये विचार गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा और सार्क जर्नलिस्ट फोरम के संयुक्त तत्वावधान  में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किए गए। इस संगोष्ठी में भारत, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के 100 से अधिक पत्रकार,विषय  विशेषज्ञ और  शोध अध्येता शामिल हो रहे हैं। कार्यक्रम की संकल्पना और आयोजन गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के प्रांगण में मानविकी संकाय के जनसंचार और मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा किया जा रहा है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक श्री संजय द्विवेदी ने कहा – “कम्युनिकेशन का काम ही है जोड़ना।  अब ग्लोबल सिटीजन की बात हो रही है। वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष भारत के मनीषियों ने प्राचीन काल से किया है। हमें ईश्वर ने मानवीय गुण दिए, ईश्वर का रास्ता एकता की ओर ले जाता है। हमारे ऋषियों ने कहा : ‘मनुर्भव’ अर्थात् इंसान बनो। इसे सीखना पड़ता है।  भारत में माना गया है कि पूरी मनुष्यता के लिए काम करना है। कम्युनिकेशन का मतलब ही  है संवाद करना, निकट आना। इंसान बनाना। भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं में बांग्ला और नेपाली भी हैं। जो बंग्लादेश और नेपाल की आधिकारिक भाषाएं हैं। इस तरह हम भाषा की डोर से जुड़े हुए हैं।सभी भाषाएं राष्ट्र भाषाएं है, हिंदी  राजभाषा है।

एसआरएफ के अध्यक्ष श्री राजू लामा ने कहा – “सभ्यता का आरंभ भारत से हुआ और सनातन धर्म से हुआ। सनातन धर्म का विचार सभी विचारों में सर्वाधिक प्राचीन है। आज भारत विश्व के पांच प्रमुख समर्थ देशों में है। भारत, नेपाल, बांग्लादेश की उत्पत्ति समान है और एक है। 21वीं सदी एशिया की सदी होगी । भारत को दक्षिण एशिया और पूरे विश्व में शांति और सद्भाव की स्थापना में नेतृत्वकारी भूमिका निभानी चाहिए। हम भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के निर्णयों और विचारों को बहुत उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं।” श्री लामा ने अफगानिस्तान में महिला पत्रकारों की कठिनाइयों का जिक्र करते हुए कहा  – ” अफगानिस्तान में महिला न्यूज़ एंकर को बुर्का पहनकर समाचार पढ़ना पड़ता है। यह गंभीर विषय है। हमें इसका विरोध करना चाहिए।”

संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रवींद्र कुमार सिन्हा ने कहा कि – “राष्ट्र निर्माण एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। राष्ट्र निर्माण राष्ट्र के बारे में अवधारणा को अभिव्यक्त और स्पष्ट करने से शुरू होता है। पत्रकार राष्ट्र निर्माण में सहयोगी दर्शन, विचारों और भावनाओं को लोगों तक पहुंचाने में मदद करते हैं। जनमत बनाने में समर्थ मीडिया राष्ट्रनिर्माण के लिए बहुत उपयोगी है।” आगे उन्होंने कहा कि ” संचार तकनीक ने पत्रकारिता को बहुत अधिक बदल दिया है। पत्रकारों को तकनीक में परिवर्तन के साथ निरंतर नए प्रयोगों को सीखना है और अपने तौर-तरीके बदलने हैं। आने वाले भविष्य का संचार क्वांटम कम्युनिकेशन पर आधारित होगा। भारत की कई प्रयोगशालाओं में इस विषय पर शोध किया जा रहा है। “

मानविकी और समाज विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की संरक्षक प्रोफेसर (डॉक्टर) बंदना पांडे ने अपने स्वागत भाषण में कहा – ” भारत एक भूखंड नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। पत्रकारों को सत्यम शिवम सुंदरम की भावना के अनुरूप कार्य करना चाहिए जिससे सभी का हित हो। मुझे विश्वास है कि संगोष्ठी में इन विषयों पर गंभीर विचार-विमर्श होगा।” उन्होंने सभी को विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दी।

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