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INDIA Alliance: क्या मायावती को घेरने की कवायद में जुटी है कांग्रेस, राहुल के इस बयान के क्या है सियासी मायने

बीएस राय: नेता प्रतिपक्ष (LOP) राहुल गांधी ने रायबरेली में सनसनीखेज खुलासा किया। उन्होंने कहा कि अगर बसपा उनके साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ती तो उत्तर प्रदेश में भाजपा का सफाया तय था। उन्होंने कहा, पता नहीं मायावती ने चुनाव लड़ने को लेकर उदासीन रवैया क्यों अपनाया है। राहुल गांधी का यह खुलासा देश की राजनीति में तूफान आने का संकेत है। राहुल गांधी ने यह बात तब कही जब एक दलित युवक ने उनसे कांशीराम और मायावती के बारे में पूछा।

उन्होंने कहा था कि बहन मायावती के सत्ता में आने पर दलितों की स्थिति बदल गई। इसके बाद राहुल गांधी ने उससे कहा कि चुनाव से पहले हमने उनसे भारत गठबंधन में शामिल होने को कहा था। अगर ऐसा होता तो हमारे लिए सत्ता की राह आसान हो जाती। योगी सरकार का ढोल उत्तर प्रदेश में दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन अब राहुल गांधी का मायावती को चुनावों के प्रति उदासीन कहना इस बात का संकेत है कि गठबंधन न होने की स्थिति में दलित वोटरों को अपनी लाइन खुद तय करनी चाहिए।

हालांकि, अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा हो। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और 2025 में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। विधानसभा में सपा और बसपा ने 1993 का चुनाव मिलकर लड़ा था। तब उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की सरकार बनी थी।

इसके बाद 1996 में बसपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। गठबंधन को फायदा भी हुआ 1996 के विधानसभा चुनाव में मायावती को लगा कि कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ना उनके लिए फायदेमंद नहीं है। बड़ी पार्टियां छोटी पार्टियों का वोट बैंक छीन सकती हैं। इसके बाद मायावती ने कांग्रेस से दूरी बना ली। 2017 में विधानसभा में सपा और कांग्रेस ने फिर हाथ मिलाया। तब बसपा को 19 सीटें मिलीं। सत्तारूढ़ सपा सिर्फ 47 सीटें और उसकी सहयोगी कांग्रेस को सिर्फ 7 सीटें ही मिल पाईं। जबकि भाजपा के एनडीए गठबंधन को 312 सीटें मिलीं।

2022 के विधानसभा चुनाव में सभी विपक्षी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा का झंडा फिर लहराया लेकिन उसकी सीटें काफी कम हो गईं। उसे कुल 255 सीटों से संतोष करना पड़ा। 2022 में सपा को फायदा इसके उलट सपा को राष्ट्रीय लोकदल और कुछ अन्य दलों से गठबंधन करने का फायदा मिला। उसे 111 सीटें मिलीं। कांग्रेस और बसपा ने सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा। दोनों को क्रमश: दो और एक सीट मिली।

देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का अखाड़ा काफी दमदार है। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री यूपी से ही आते हैं। इसीलिए उत्तर प्रदेश के संदर्भ में राहुल गांधी का यह विस्फोटक बयान तब आया जब वह अपने लोकसभा क्षेत्र रायबरेली के दो दिवसीय दौरे पर हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में भाजपा के खात्मे का खाका तैयार करने वाले अखिलेश यादव सिर्फ लखनऊ पर ही फोकस कर रहे हैं। उन्हें केंद्र में सरकार बनाने या प्रधानमंत्री बनने की कोई जल्दी नहीं है। उनका पूरा फोकस उत्तर प्रदेश पर है।

दो दिन पहले कांग्रेस नेता उदित राज ने बयान दिया था कि मायावती ने दलितों का गला घोंटा है। इसलिए अब मायावती का गला घोंटने का समय आ गया है। इसके बाद अखिलेश यादव सपा की मुलायम सिंह यादव सरकार में मंत्री रहे चौधरी यशपाल सिंह की पोती की शादी में सहारनपुर गए थे। वहां उनकी भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत से बातचीत हुई थी।

बताया जाता है कि तब अखिलेश यादव ने उनसे कहा था कि अगर 2024 में मायावती उनके साथ होतीं तो वह भाजपा को जीरो पर पहुंचा देते। इस तरह उन्होंने 2027 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष की रणनीति का खुलासा किया था। यह मायावती को हर तरफ से घेरने की कवायद है। अब बसपा कब तक भाजपा से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने से कतराती रहेगी!

गुरुवार को राहुल गांधी रायबरेली शहर स्थित मूल भारती आवासीय विद्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने छात्रावास में छात्रों से बातचीत की। उन्होंने यह बात एक दलित छात्र के सवाल के जवाब में कही। प्रदेश विधानसभा चुनाव से दो साल पहले शुरू हुई विपक्ष की यह सुगबुगाहट दर्शाती है कि इस बार विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने के लिए अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं।

मूलभारती विद्यालय में उन्होंने साफ कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने मायावती को भारत गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया था। पहली बार विपक्षी गठबंधन के किसी बड़े नेता ने यह खुलासा किया है। चुनाव लड़ने में बसपा की यह बेरुखी मायावती के लिए महंगी पड़ सकती है।

आजाद के पास अभी कोई संगठन नहीं है और इसके बावजूद उन्होंने यह सुरक्षित सीट जीत ली। बसपा एक दशक पहले तक राष्ट्रीय पार्टी हुआ करती थी। लेकिन आज उसकी हालत यह है कि उत्तर प्रदेश में भी उसकी मान्यता खतरे में है। लोकसभा में उसका कोई सदस्य नहीं है और विधानसभा में सिर्फ एक सदस्य है।

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