Rajasthan By-Election के नतीजे तय करेंगे सचिन पायलट की राजनीतिक दिशा ?

बीएस राय/ राजस्थान उपचुनाव: राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव जहां एक तरफ भजनलाल सरकार के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो रहे हैं, वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट के लिए भी यह चुनाव अहम है। यह उपचुनाव न सिर्फ राज्य की राजनीति को प्रभावित करने वाला है, बल्कि पायलट के भविष्य की दिशा भी तय कर सकता है। इन 7 सीटों के नतीजे से यह साफ हो जाएगा कि राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट कितने मजबूत हैं और क्या उनका राजनीतिक भविष्य अभी भी पार्टी के केंद्र में है?
2023 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की हार के बाद सचिन पायलट को कांग्रेस ने दिल्ली भेज दिया था। वहां मल्लिकार्जुन खड़गे की नई टीम में पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया। इसके बावजूद पायलट की नजर लगातार राजस्थान की राजनीति पर है। वह जल्द से जल्द राज्य की राजनीति में वापसी कर 2028 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभालने की कोशिश में हैं।
राजस्थान की जिन 7 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से 3 सीटें- दौसा, देवली-उनियारा और झुंझुनू- सचिन पायलट का परंपरागत गढ़ मानी जाती हैं। दौसा से पायलट के करीबी मुरारी लाल मीना, देवली से हरीश मीना और झुंझुनू से बृजेंद्र ओला चुनाव जीत गए थे, लेकिन वे 2024 में सांसद बनेंगे। इन सीटों पर पायलट के समर्थकों को टिकट दिया गया है। इन तीनों सीटों के नतीजे तय करेंगे कि पायलट राजस्थान में अपनी राजनीतिक पकड़ बरकरार रख पाते हैं या नहीं। दौसा, देवली-उनियारा और झुंझुनू में पायलट का दबदबा अहम है और अगर यहां उनका प्रभाव कमजोर पड़ता है तो यह उनके राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा कर देगा।
दौसा, देवली और झुंझुनू के अलावा रामगढ़, सलंबूर, चौरासी और खींवसर में भी उपचुनाव हो रहे हैं। रामगढ़ कांग्रेस के कब्जे में रही, जबकि सलंबूर पर भाजपा ने जीत दर्ज की। चौरासी में बाप और खींवसर में हनुमान बेनीवाल ने जीत दर्ज की। इस बार इन सीटों पर कांग्रेस के टिकट वितरण में प्रदेश कांग्रेस की भूमिका प्रमुख रही है। अगर इन सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा तो प्रदेश कांग्रेस को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है।
2024 के चुनाव में कांग्रेस गठबंधन ने राजस्थान की 25 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन अगर उपचुनाव में कांग्रेस को उम्मीद से कम सीटें मिलती हैं तो प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पर राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है। डोटासरा का कार्यकाल और पायलट का भविष्य 2020 में राजस्थान कांग्रेस की कमान जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा को सौंपी गई थी।
डोटासरा के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2023 और 2024 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और जाट समुदाय का समर्थन भी कांग्रेस के पक्ष में रहा। अब डोटासरा का चार साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है और उदयपुर घोषणापत्र के तहत वे अधिकतम पांच साल तक ही प्रदेश अध्यक्ष रह सकते हैं। कहा जा रहा है कि डोटासरा का कार्यकाल खत्म होते ही नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो सकती है और ऐसे में सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जा सकती है। क्योंकि 2025 में जो भी नया अध्यक्ष बनेगा, उसे 2028 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में पार्टी का नेतृत्व करना होगा।
राजस्थान की राजनीति में बड़ा मोड़ राजस्थान में होने वाले उपचुनाव कांग्रेस और पायलट के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकते हैं। अगर कांग्रेस इन 7 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है और पायलट की पकड़ मजबूत नजर आती है तो उनका राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। वहीं अगर कांग्रेस को निराशा हाथ लगती है तो प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया और तेज हो सकती है, जिससे पायलट की भूमिका अहम हो सकती है। इन उपचुनावों के नतीजे प्रदेश की राजनीति में नई दिशा तय करेंगे और पायलट के लिए राजनीतिक वापसी का रास्ता खोलेंगे या फिर उन्हें और इंतजार करना पड़ेगा।



