चौथे ओलंपिक में पहला पदक जीतना चाहते हैं तीरंदाज तरुणदीप राय
अनुभवी भारतीय तीरंदाज तरुणदीप राय पेरिस में टीम के अनौपचारिक मेंटोर के तौर पर काम कर रहे हैं और उनका कहना है कि अपने चौथे ओलंपिक में भाग लेते हुए उनके लिए यह ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाली स्थिति है।
वो अपने चौथे ओलंपिक में पहला पदक जीतने की कोशिश में जुटे हैं। उन्होंने वैश्विक से महाद्वीपीय स्तर तक हर चैंपियनशिप में पदक जीते हैं, ओलंपिक में ही कोई पदक हासिल नहीं कर पाये हैं।
उन्होंने विश्व चैंपियनशिप (2005, 2019) में दो रजत, तीन स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य सहित नौ विश्व कप पदक, एशियाई चैंपियनशिप में दो रजत और एक कांस्य पदक जीते हैं।
उन्होंने एक समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘हर दिन भावनात्मक होता है। यह चौथी दफा है। मेरे लिए यह ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाली स्थिति है।
मैं अपने साथी तीरंदाजों से भी कहता हूं। शायद कोई अपना पहला या दूसरा ओलंपिक खेल रहा हो, उसे इस तरह सोचना चाहिए कि ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’। आपको इस तरह प्रयास करना चाहिए जैसे कि यह आपका आखिरी ओलंपिक हो।
सिक्किम के अनुभवी तीरंदाज ने 2004 एथेंस, 2012 लंदन और टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लिया था। टोक्यो में पुरुष टीम क्वार्टरफाइनल तक पहुंची थी जिसमें राय थे।
उन्होंने कहा, ‘‘ओलंपिक हर खिलाड़ी का सपना होता है और मैं भी इससे अलग नहीं हूं। इसके लिए आपको सर्वश्रेष्ठ तैयारी करनी होती है। आपको क्वालीफाई करने और पदक जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है।
राय ने कहा, ‘‘इस ओलंपिक में तीन साल के अंतराल के बाद खेल रहा हूं। कई बदलाव आये हैं जो सकारात्मक हैं। टोक्यो में जो भी कमी रह गई थी उसे दूर करना मेरा लक्ष्य है। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगा।
भारतीय तीरंदाज 1988 में डेब्यू के बाद से नियमित रूप से ओलंपिक में भाग लेते रहे हैं, अब तक पदक नहीं जीत पाये हैं। भारतीय तीरंदाज गुरुवार को यहां क्वालीफिकेशन दौर से अभियान शुरू करेंगे।
राय ने कहा, ‘‘हमेशा उम्मीदें रहती हैं। हमारे पास पदक जीतने की काबिलियत थी, मामूली अंतर से इससे चूकते रहे और खाली हाथ लौटे। उन्होंने कहा, ‘‘पर इस बार हम सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में हैं, हमने इन चीजों को नियंत्रण में रखा है।
राय ने सिक्किम में एक अकादमी बनायी है, उन्होंने कहा, ‘‘कोचिंग देना या नहीं देना, आपको खेल को कुछ वापस देना होता है। हमारे पास इसी चीज कमी थी। तो अपनी तकनीक और अनुभव को जूनियर खिलाड़ियों को दे रहा हूं। सीनियर तीरंदाजों को इस तरह वापस आकर कोचिंग की कमी को पूरा करा चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने 28 साल के अनुभव को घर बैठकर बर्बाद नहीं करना चाहता। तीरंदाजी संघ को भी इसके बारे में सोचना चाहिए। मैं भविष्य में भारतीय तीरंदाजी में योगदान देना चाहता हूं।