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मप्र में नक्‍सलवाद पर चोट, केबी डिवीजन के 10 माओवादिओं ने हथियार डाले , कुख्यात कबीर के भी शामिल होने की खबर !

बालाघाट : मध्य प्रदेश सरकार के माओवाद के खात्मे के लिए घोषित मिशन 2026 ने शनिवार देर रात बड़ी उपलब्धि दर्ज की है। कान्हा–भोरमदेव (केबी) डिवीजन के 10 सक्रिय माओवादियों ने आत्मसमर्पण का फैसला लेते हुए बालाघाट पुलिस के सामने हथियार डाल दिए। हालांकि इसकी अधिकारिक पुष्‍टि अभी शेष है, लेकिन जानकारी में आया है कि समर्पित माओवादियों में कुख्यात माओवादी कमांडर कबीर भी शामिल है, जिसके सरेंडर को सुरक्षा एजेंसियां पिछले कई वर्षों से सबसे बड़ी उपलब्धियों में एक मान रही हैं।बताया जा रहा है कि कबीर पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र इन तीन राज्यों में कुल 77 लाख रुपये का इनाम घोषित था। कबीर अपने नौ साथियों जिनमें चार महिलाएं और छह पुरुष माओवादी शामिल हैं के साथ देर रात आईजी के सरकारी निवास पर पहुंचा। सुरक्षा एजेंसियों ने पूरे क्षेत्र की बारीकी से घेराबंदी कर ऑपरेशन को गोपनीय रखा हुआ है। इस संबंध में फिलहाल इतना ज्ञात हुआ है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज दोपहर तीन बजे बालाघाट पहुंच रहे हैं, जहां वे पुलिस लाइन ग्राउंड में आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में शामिल होंगे। संभावना है कि मुख्यमंत्री की मौजूदगी में ही इन सभी माओवादियों को औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण कराया जाएगा।कबीर था तीन राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्दकबीर को केबी डिवीजन की रीढ़ माना जाता था। वह लंबे समय तक बालाघाट, मंदला और छत्तीसगढ़ के सीमा क्षेत्रों में सक्रिय रहा। छत्तीसगढ़ की कई बड़ी माओवादी वारदात, पुलिस पार्टी पर हमलों और ग्रामीण इलाकों में सशस्त्र दबाव बनाने जैसी घटनाओं में उसका नाम बार-बार सामने आया। ऐसे में कबीर का सरेंडर माओवादी नेटवर्क की संरचनात्मक कमजोरी का संकेत माना जा रहा है।एक महीने में तीसरी बड़ी सफलताबालाघाट–चंद्रपुर–गोंदिया का वन क्षेत्र लंबे समय से माओवादी गतिविधियों का केंद्र रहा है। लेकिन पिछले दो महीनों में जिस तरह सरेंडर की शृंखला तेज हुई है, उसे सुरक्षा विशेषज्ञ निर्णायक मोड़ मान रहे हैं। 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ की महिला माओवादी सुनीता ने बालाघाट के किन्‍ही चौकी में आत्मसमर्पण किया था। इसके बाद 28 नवंबर को दर्रेकसा दलम के 11 माओवादियों ने महाराष्ट्र के गोंदिया में हथियार डाल दिए थे। ये वही माओवादी थे जिनसे हुई मुठभेड़ में हॉकफोर्स के बहादुर निरीक्षक आशीष शर्मा ने बलिदान दिया था। इस घटना के बाद पुलिस ने सरेंडर और टारगेटेड ऑपरेशन दोनों को तेज कर दिया था। अब कबीर सहित 10 माओवादियों का आत्मसमर्पण उसी लगातार दबाव और रणनीति का नतीजा है।उल्‍लेखनीय है कि सभी माओवादी बीते कई महीनों से पुलिस दबाव और आंतरिक कमजोरियों से टूट चुके थे। लगातार चल रहे सर्च ऑपरेशन, कैडर में गिरती संख्या, हथियारों की कमी और स्थानीय समर्थन घटने की वजह से उनका हौसला कमजोर पड़ा। अंततः उन्होंने समर्पण को ही रास्ता चुना। अब इस सरेंडर को सरकार के मिशन 2026 की बड़ी रणनीतिक जीत के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसका उद्देश्य केंद्र के साथ मध्य प्रदेश को पूरी तरह माओवादी नक्‍सलवाद से मुक्त बनाना है।—————

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