पिंक बॉल टेस्ट : एक दशक बाद भी क्यों बना सिर्फ ऑस्ट्रेलिया का खेल?

करीब एक दशक पहले इंटरनेशनल क्रिकेट ने एक अनोखा मोड़ लिया, जब ऑस्ट्रेलिया ने टेस्ट क्रिकेट में एक ऐसा प्रयोग किया जिसने खेल का रंग ही बदल दिया—पिंक बॉल टेस्ट का आगाज़।

27 नवंबर 2015 को एडिलेड में वही ऐतिहासिक पल आया, जब मार्टिन गप्टिल ने मिचेल स्टार्क की गेंद का सामना करते हुए क्रिकेट के पहले डे-नाइट टेस्ट की शुरुआत की। खेल वही था, लेकिन माहौल और अनुभव पूरी तरह नया—और यहीं से पिंक बॉल टेस्ट क्रांति की कहानी शुरू हुई।

न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया, ये मैच काफी मनोरंजक तो था, लेकिन इसमें कुछ विवाद भी हुए, जिसे ऑस्ट्रेलिया ने 3 विकेट से जीता। बहुत सारे दर्शक मैच देखने के लिए आए। टीवी रेटिंग्स भी दमदार थी, लेकिन अब ऐसा लगता है कि पिंक बॉल टेस्ट केवल ऑस्ट्रेलिया का ही होकर रह गया है।

साभार : गूगल

2000 के करीब से ही डे-नाइट टेस्ट को शुरू करने की डिमांड होने लगी थी। 2010 में एक बार इंग्लैंड और बांग्लादेश के बीच लॉर्ड्स में अंडर लाइट्स टेस्ट कराने की तैयारी थी, लेकिन ये प्लान सफल नहीं हुआ।

आखिर में 2015 में इसकी शुरुआत हुई। जब ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड मैदान में उतरे तो 1 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर का बोनस भी रखा गया था, जिससे मैच और भी दिलचस्प हो गया था। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के पूर्व सीईओ जेम्स सदरलैंड डे-नाइट टेस्ट को शुरू कराने के पीछे थे।

भारतीय टीम ने कुल 5 पिंक बॉल टेस्ट खेले हैं, जिनमें से दो मुकाबले एडिलेड में खेले गए हैं। गाबा में गुरुवार 4 दिसंबर से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पिंक बॉल टेस्ट खेला जाना है।

ये 2015 के बाद शुरू हुआ सिर्फ 24वां मेंस डे-नाइट टेस्ट है। इसमें भी आधे से ज्यादा (13) टेस्ट ऑस्ट्रेलिया में खेले गए हैं।
एडिलेड को पिंक बॉल टेस्ट का होम कहा जाता है, लेकिन इस बार ब्रिसबेन में ये मैच रखा गया है। सवाल वही है कि आखिर ये आइडिया फ्लॉप क्यों हो रहा है और सिर्फ ऑस्ट्रेलिया तक ही इसे क्यों सीमित रखा गया है?

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया में इवेंट्स और ऑपरेशंस के एग्जीक्यूटिव जनरल मैनेजर जोएल मॉरिसन ने ईएसपीएन को बताया, “ऑस्ट्रेलिया में यह इसलिए काम करता है, क्योंकि गर्मियों में इस समय मौसम बहुत अच्छा होता है, वर्ल्ड-क्लास स्टेडियम और सुविधाएं होती हैं और फ्लड लाइटिंग भी बहुत अच्छी होती है और आखिरकार, ऑस्ट्रेलियाई कंडीशन में डे-नाइट फॉर्मेट को सबसे अच्छे से सपोर्ट करने के लिए पिंक बॉल और विकेट को ऑप्टिमाइज करने में लंबे समय से काफी इन्वेस्टमेंट किया गया है।”

पिछले कुछ सालों में यह बात साफ हो गई है कि एक आइडियल डे-नाइट सिनेरियो बनाने के लिए आपको कुछ खास तरह के हालातों की जरूरत होती है। इनमें ओस का कम असर, ऐसी पिच जो पिंक बॉल को लंबे समय तक मदद करे। परफेक्ट पिच बनाना चुनौती है।

ज्यादा देर तक कुछ हद तक सख्त बनाए रखने में मदद करे, लेकिन ऐसी न हो कि हालात खेलने लायक न रहें और ऐसा मौसम जो शाम को गर्म रहने का ठीक-ठाक भरोसा दे। इंग्लैंड में मौसम की समस्या है, जबकि भारत में ओस एक फैक्टर है।

साउथ अफ्रीका में एक पिंक बॉल टेस्ट खेला गया है, जहां लाइट्स की समस्या होती है। श्रीलंका में फ्लडलाइट्स नहीं हैं। पाकिस्तान में अभी तक इसका आयोजन नहीं हुआ है। न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज भी परफेक्ट नहीं हैं।

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