Jharkhand Elections 2024: बीजेपी की इस रणनीति से क्यों बढ़ी झामुमो की टेंशन

बीएस राय: झारखंड में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है। इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नई रणनीति अपनाई है। बीजेपी एक तरफ जहां ‘लव जिहाद’ और ‘भूमि जिहाद’ जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रही है, इसके साथ ही ‘रोटी और बेटी’ का नारा देकर चुनावी मैदान में उतर रही भाजपा ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ मजबूत माहौल बनाने की कोशिश की है।
बड़े नेता अपने भाषणों में इन मुद्दों को जोर-शोर से उठा रहे हैं, ताकि जनता के बीच एक खास संदेश जा सके। लेकिन इन सबके पीछे भाजपा की असली रणनीति कुछ और ही है- सीटों पर केंद्रित ‘साइलेंट रणनीति’। सीटवार रणनीति: हर सीट के लिए अलग प्लान इस बार भाजपा ने चुनाव में अनूठी और बेमिसाल रणनीति अपनाई है। पार्टी ने हर सीट के लिए अलग रणनीति बनाई है और सीटों के हिसाब से बड़े नेताओं को तैनात किया है।
झारखंड में पार्टी के शीर्ष नेता एक या दो सीटों पर फोकस कर रहे हैं, ताकि कम से कम 42 सीटें जीतने का जादुई आंकड़ा छूना आसान हो। खास बात यह है कि भाजपा ने राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इस चुनावी रण में अलग-अलग सीटों पर उतारा है ताकि हर सीट पर जीत सुनिश्चित की जा सके। पूर्व मुख्यमंत्रियों की भूमिका अर्जुन मुंडा – झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अर्जुन मुंडा इस बार सिर्फ पोटका सीट पर फोकस कर रहे हैं, जहां से उनकी पत्नी मीरा मुंडा चुनाव लड़ रही हैं। पोटका सीट पर 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने जीत दर्ज की थी।
अब भाजपा इस सीट को अपने खाते में लाने की कोशिश में है। बाबूलाल मरांडी – झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी इस बार धनवार सीट से मैदान में हैं और पूरा फोकस इसी पर कर रहे हैं। इस बार भाजपा किसी भी तरह से मरांडी की जीत सुनिश्चित करना चाहती है, क्योंकि भाकपा माले और जेएमएम के गठबंधन ने यहां भाजपा के खिलाफ मजबूत घेराबंदी की है। चंपई सोरेन – पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को इस बार सरायकेला और घाटशिला सीट की जिम्मेदारी दी गई है। वह खुद सरायकेला से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि घाटशिला से उनके बेटे बाबूलाल मैदान में हैं। भाजपा इन सीटों पर जीत के जरिए कड़ा संदेश देने की योजना बना रही है।
झामुमो सूत्रों के मुताबिक भाजपा की इस ‘साइलेंट रणनीति’ ने गठबंधन में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसे सहयोगी दलों की सीटों पर भी दबाव बढ़ा दिया है। झामुमो को अपने उम्मीदवारों से ज्यादा उन सीटों की चिंता है, जहां कांग्रेस या राजद का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है। इन सीटों पर भाजपा के पक्ष में सत्ता विरोधी स्थिति हो सकती है, जिससे झामुमो और सहयोगी दलों के लिए चुनौती बढ़ गई है।
भाजपा ने सीटों के हिसाब से सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दी है। मसलन, सांसद निशिकांत दुबे संथाल परगना की तीन सीटों सारठ, मधुपुर और जामताड़ा में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ भी अपने-अपने क्षेत्रों पर फोकस कर रहे हैं।
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 43 पर मतदान पूरा हो चुका है और अब 38 सीटों पर चुनाव बाकी है। भाजपा की रणनीति इस बार सीटों पर व्यक्तिगत फोकस के जरिए अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने की है, ताकि वह 42 सीटों की बहुमत सीमा को पार कर राज्य की सत्ता में वापसी कर सके।
झारखंड के चुनावी दंगल में इस बार भाजपा सिर्फ हेमंत सोरेन की अगुआई वाले गठबंधन से ही मुकाबला नहीं कर रही है, बल्कि एक ऐसी रणनीति के साथ भी मैदान में है, जो सीटवार तैयारी और सटीक मोर्चा गठन पर आधारित है। भाजपा की ‘साइलेंट रणनीति’ और स्थानीय फोकस ने राज्य के मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को बदलने की कोशिश की है, जिसके चलते इस बार चुनाव का नतीजा दिलचस्प हो सकता है।



