यूपी उपचुनाव/ सपा के सहारे क्या खैर-गाजियाबाद का दुर्ग भेद पाएगी कांग्रेस

लखनऊ / बी एस राय: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में सपा और कांग्रेस एक बार फिर साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सीट बंटवारे के तहत सपा सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस गाजियाबाद और खैर पर किस्मत आजमाएगी। दोनों सीटें भाजपा के पास हैं, जिससे कांग्रेस के लिए चुनौती और बढ़ गई है। हारी हुई सीटों पर लड़कर कांग्रेस क्या हासिल करेगी? इन सीटों को कांग्रेस एक दशक से नहीं जीती है। हालांकि कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता उत्साह से लवरेज दिख रहे हैं। कांग्रेस को भरोसा है कि वह सपा के साथ मिलकर इन सीटों पर भी बीजेपी को पटकनी दे सकती है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और कांग्रेस एक बार फिर साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। सीट बंटवारे का फॉर्मूला भी तय हो गया है। यूपी की 9 विधानसभा सीटों में से सपा सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस को अलीगढ़ और गाजियाबाद की खैर की दो सीटें दी गई हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों सीटें भाजपा के पास हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव की तरह सपा ने कांग्रेस को इन दो कठिन सीटों पर किस्मत आजमाने का मौका दिया है। सपा-कांग्रेस के बीच सीट
इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के लिए चुनौती काफी कठिन मानी जा रही है, क्योंकि कांग्रेस पिछले 44 साल से खैर सीट नहीं जीत पाई है, जबकि गाजियाबाद सीट पर 22 साल से कांग्रेस का कोई दबदबा नहीं रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस इस उपचुनाव में क्या हासिल करना चाहती है? यह उपचुनाव इसलिए जरूरी था, क्योंकि लोकसभा चुनाव में 9 विधायकों के सांसद बन जाने और सीसामऊ सीट के विधायक इरफान सोलंकी के दोषी करार दिए जाने के बाद 10 विधानसभा सीटें खाली हो गई थीं। कांग्रेस ने उपचुनाव में पांच सीटों की मांग की थी, जिसमें गाजियाबाद, मझवां, मिल्कीपुर, खैर और फूलपुर शामिल थीं। लेकिन सपा और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई और अंतत: कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिलीं।
खैर और गाजियाबाद दोनों सीटें कांग्रेस के लिए बेहद कठिन मानी जा रही हैं। खैर विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने आखिरी बार 1980 में जीत दर्ज की थी, जबकि गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस 2002 से नहीं जीत पाई है। 2022 के विधानसभा चुनाव में गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को सिर्फ 11,818 वोट मिले, जो बेहद कम था। वहीं, खैर सीट पर 2022 में कांग्रेस को सिर्फ 1,514 वोट मिले, जो कांग्रेस के लिए इस सीट पर स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है।
गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अब तक 18 चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस को सिर्फ पांच बार जीत मिली है। वहीं, सपा ने सिर्फ एक बार 2004 के उपचुनाव में इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2017 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। इसी तरह, खैर सीट पर भी बीजेपी का लंबे समय से दबदबा रहा है। जातिगत और राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से कांग्रेस को खैर और गाजियाबाद दोनों सीटों पर कोई खास समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं है। इन सीटों पर सपा का यादव वोट बैंक भी सीमित है, जिससे कांग्रेस के लिए चुनौती और मुश्किल हो गई है।
सवाल यह है कि इन दो कठिन सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस क्या हासिल करना चाहती है? गाजियाबाद और खैर सीट पर भाजपा के बीच कड़ी टक्कर है और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के लिए इन सीटों पर जीत हासिल करना काफी मुश्किल होगा। सपा के समर्थन से कांग्रेस के पास कुछ मौके जरूर हैं, लेकिन जातिगत समीकरण और कांग्रेस का कमजोर वोट बैंक उसके लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पेश कर रही है।
भाजपा-रालोद गठबंधन का असर भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का गठबंधन भी उपचुनाव में कांग्रेस के लिए बड़ी बाधा साबित हो सकता है। जाट समुदाय के वोट रालोद की ओर झुके होने से भाजपा गठबंधन का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। पिछले तीन चुनावों से भाजपा की लगातार जीत ने उसकी राजनीतिक पकड़ को और मजबूत किया है।
कांग्रेस के लिए आगे की राह कुल मिलाकर उपचुनाव की ये दोनों सीटें राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस के लिए कड़ी परीक्षा साबित होने वाली हैं। कांग्रेस के पास न तो मजबूत वोट बैंक है और न ही पिछले चुनावों में कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन। ऐसे में कांग्रेस का उद्देश्य उपचुनाव में कोई विशेष राजनीतिक लाभ लेने के बजाय अपनी उपस्थिति दर्ज कराना और भविष्य की रणनीति के लिए अनुभव हासिल करना हो सकता है।



