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पदक जीतने के लिए अविश्वसनीय कौशल व ‘किस्मत’ की जरुरत : अमित पंघाल

टोक्यो ओलंपिक में मिली असफलता और उसके बाद के संघर्षों से पहले मुक्केबाज अमित पंघाल को नियति पर भरोसा नहीं था, कई चुनौतियों को पार कर ओलंपिक का टिकट हासिल करने के बाद उन्हें पदक के लिए अपने अविश्वसनीय कौशल के अलावा थोड़ी ‘किस्मत’ की आवश्यकता होगी।

साभार : गूगल

उन्होंने एक समाचार एजेंसी से कहा, ‘‘ओलंपिक के बाद मैंने किस्मत पर विश्वास करना शुरू कर दिया है। वह इस तरह की उपलब्धि हासिल करने वाले एकमात्र भारतीय पुरुष मुक्केबाज थे। वह अपने वजन वर्ग में दुनिया के शीर्ष मुक्केबाज बने, पेरिस ओलंपिक के प्री-क्वार्टर फाइनल से बाहर होने के बाद उनका बुरा समय शुरू हो गया।

उन्होंने भारतीय मुक्केबाजी संघ की मूल्यांकन प्रणाली के आधार पर राष्ट्रीय टीम में अपना स्थान गंवा दिया। इस दौरान उनकी आलोचनाओं ने उनके आत्मविश्वास को बुरी तरह प्रभावित किया और उन्हें अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया।

पंघाल ने कहा, ‘‘ जो हमारे विदेशी कोच थे उनका मुंह देख कर तो नहीं लग रहा था मेरा समय आएगा पर किस्मत में होता है तो सबको मिलता है।

इस चुनौतीपूर्ण दौर में उन्हें प्रेरित करने में उनके कोच अनिल धनखड़ ने अहम भूमिका निभाई। पंघाल ने कहा, ‘उस समय कुछ अच्छा नहीं लगता था क्योंकि आप खेलना चाहते हैं और आपको खेलने ही नहीं दिया जा रहा था।

पंघाल को उस समय मौका मिला जब दीपक भोरिया दो प्रयासों के बाद 51 किग्रा में कोटा हासिल करने में असफल रहे। पंघाल को अंतिम क्वालीफाइंग स्पर्धा के लिए चुना गया और उन्होंने देश को निराश नहीं किया। ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का यह उनका पहला और एकमात्र मौका था और उन्होंने आत्मविश्वास के साथ ऐसा किया।

वह पेरिस में टोक्यो की निराशा को पीछे छोड़ना चाहेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘ कोटा हासिल कर अच्छा लग रहा है। क्वालीफायर में जाने का कोई दबाव नहीं था। मैं शुरुआत में थोड़ा डरा हुआ था क्योंकि यह एक बड़ा टूर्नामेंट था। सेना में सूबेदार के पद पर तैनात इस मुक्केबाज ने कहा, ‘‘मुझे यह भी डर था कि सिर में गंभीर चोट ना लग जाये।

जब भी मैं लंबे समय के बाद खेलने जाता हूं तो डरता हूं कि ऐसा होगा, यह कोटा जीतने के लिए यह आखिरी मौका था। पिछले तीन वर्षों में बहुत सीमित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के कारण पंघाल को कई पहलुओं पर काम करना पड़ा।

उन्हें प्रतियोगिता से बमुश्किल एक महीने पहले अपने चयन के बारे में पता चला था। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हर चीज पर काम किया। मैंने शरीर को विश्राम देने पर काम किया मुकाबलों के बीच के विश्राम काफी अहम होता है। प्रतियोगिताओं से दूर रहने के कारण मेरी सहनशक्ति कम हो गयी।

अभ्यास के दौरान मुझे इस पहलू पर काफी काम करना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे टूर्नामेंट से एक महीने से कम समय पहले पता चला कि मुझे खेलने के लिए चुना गया है। मुझे नहीं पता था कि मैं जा पाऊंगा या नहीं, मैं अभ्यास करना नहीं छोड़ता था। पंघाल के अलावा पुरुष वर्ग में निशांत देव (71 किग्रा) ने भी ओलंपिक कोटा हासिल किया है

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