अमीर देशों को जलावुय कोष में अपना हिस्सा बढ़ाना चाहिए
नई दिल्ली (शाश्वत तिवारी)। डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन ने सोमवार को कहा कि अमीर देशों को जलावुय कोष में अपना हिस्सा बढ़ाना चाहिए जिससे विकासशील देश जलवायु परिवर्तन अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकें। वह ग्लासगो में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होने वाली कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी की वैश्विक जलवायु वार्ता के 26वें सम्मेलन से कुछ हफ्ते पहले राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रही थीं।
जलवायु कोष में अपने योगदान को बढ़ाएगा डेनमार्क: प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन
कार्यक्रम में डेनमार्क की प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन कहा यह उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र का 26वां वार्षिक सम्मेलन एक “महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन होगा, जिसमें यह आकलन किया जाएगा कि पेरिस समझौते में निर्धारित जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को लेकर देश कुछ “कठोर निर्णय लेने के इच्छुक हैं या नहीं।
पेरिस समझौते को लेकर विकसित देशों ने विकसाशील देशों को सहयोग देने के लिए 2020 से सालाना 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का वादा किया था, जिससे विकसाशील देश जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतिगत उपायों को लागू कर सके। प्रधानमंत्री ने फ्रेडरिकसेन कहा कि डेनमार्क जलवायु कोष में अपने योगदान को बढ़ाएगा।
डेनिश प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन कहा जलवायु चुनौती हम सभी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यह हम सभी को प्रभावित करता है और इसका सामना तभी किया जा सकता है जब हम सभी अपनी भूमिका निभाएं, मैं इस बात को रेखांकित करना चाहूंगी कि दुनिया के सबसे अमीर देशों को अपनी भूमिका निभानी और निश्चित रूप से डेनमार्क ऐसा करने के लिए तैयार है। हम विकासशील देशों के लिए अपने अनुदान-आधारित जलवायु वित्त को कम से कम 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष तक बढ़ाएंगे।
डेनिश प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन सबसे गरीब देश अक्सर जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि हमारे अनुदान-आधारित जलवायु वित्त का कम से कम 60 प्रतिशत जलवायु अनुकूलन के लिए समर्पित होगा। कुल मिलाकर, डेनमार्क 100 अरब डॉलर के सामूहिक वैश्विक लक्ष्य का कम से कम एक प्रतिशत योगदान देगा।
डेनिश प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन ने स्वीकार किया कि डेनमार्क जैसे समृद्ध देश के लिए जलवायु परिवर्तन के उपायों को लागू करना आसान है, लेकिन भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह आसान नहीं है। उन्होंने कहा हमारे (डेनमार्क और भारत) शुरुआती बिंदु बहुत अलग हैं। डेनमार्क के लिए यह बहुत आसान है, यूरोप के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखना बहुत आसान है। लेकिन अगर आपने और दूसरे देशों ने भी वही गलतियां कीं जो हमने कीं तो हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पाएंगे। इसलिए हमने जो किया, आपको उससे ज्यादा स्मार्ट तरीके से काम करने की जरूरत है।
दुनिया को प्रेरित कर सकती है भारत-डेनमार्क साझेदारी:
डेनिश प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन ने कहा भारत इतना बड़ा देश है। इतने सारे लोग दुनिया के इस हिस्से में रहते हैं और डेनमार्क इतना छोटा देश है। ऐसे विभिन्न देशों के बीच यह साझेदारी बाकी दुनिया को प्रेरित कर सकती है।
हरित सामरिक साझेदारी को लेकर पिछले हफ्ते जारी हुई थी पंचवर्षीय योजना:
पिछले हफ्ते, अपनी द्विपक्षीय बैठक के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डेनिस पीएम फ्रेडरिकसन ने ‘हरित सामरिक साझेदारी’ को लागू करने के लिए एक विस्तृत पंचवर्षीय कार्य योजना (2021-2026) जारी की थी, जिसे 28 सितंबर 2020 को लॉन्च किया गया था।