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साई हिसार की पहलवान निशु ने 53 किग्रा में जीता स्वर्ण, एशियाई खेलों में भागीदारी पर नजर

भरतपुर : गुरु काशी यूनिवर्सिटी की भारत की उभरती पहलवान निशु में एक अनदेखी शांति है। महज 23 वर्ष की उम्र में इतनी उपलब्धियों के बावजूद उनका शांत स्वभाव किसी को भी चौंका सकता है। इस उम्र में युवा अक्सर बेफ़िक्र होकर हँसते-खेलते हैं, वहीं निशु कम बोलती हैं और बेहद संयमित दिखती हैं। भरतपुर के लोहेगढ़ स्टेडियम में दो दिनों में तीन बाउट जीतकर उन्होंने गुरुवार को 53 किलोग्राम वर्ग में अपना पहला केआईयूजी स्वर्ण पदक अपने नाम किया।उनके शांत स्वभाव के पीछे गहरी पीड़ा भी है। बचपन में ही उन्होंने अपने बड़े भाई को ब्रेन ट्यूमर के कारण खो दिया था। यह घटना कई साल पुरानी है, लेकिन इसका असर उनके व्यक्तित्व में आज भी दिखता है।गुरुवार को निशु को सिर्फ अपनी बाउट जीतनी थी और उन्होंने शुरुआती कुछ ही सेकंड में यह साफ कर दिया कि उनका मुकाबला कोई नहीं है। शिवाजी स्टेडियम की समृद्धि संदीप घोरपड़े उनके सामने टिक नहीं सकीं। 2023 के केआईयूजी में निशु ने वाराणसी में कांस्य जीता था, इसलिए इस बार स्वर्ण उनके लिए बेहद खास रहा। उन्होंने कहा, “मेरे लिए हर प्रतियोगिता महत्वपूर्ण है। जहाँ भी खेलती हूँ, सीखती हूँ। यह स्वर्ण जीतकर बहुत खुशी है। अब यह लक्ष्य भी पूरा हो गया।”निशु की उपलब्धियाँ इससे कहीं आगे तक जाती हैं। उन्होंने इस साल सर्बिया में हुई अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में भारत के लिए कांस्य पदक जीता। वहीं क्रोएशिया में सीनियर स्तर की प्रतियोगिता में भले पदक न जीत सकीं, लेकिन प्रदर्शन से प्रभावित जरूर किया। उनकी यह सोच कि “हर प्रतियोगिता महत्वपूर्ण है” उनके विनम्र और सीखने की निरंतर इच्छा को दर्शाती है।केआईवाईजी में भी स्वर्ण जीत चुकी निशु अपने माता-पिता के समर्थन के लिए बेहद आभारी हैं। हरियाणा के अधिकांश खिलाड़ियों की तरह वे किसान परिवार से नहीं आतीं। उनके पिता ड्राइवर हैं। निशु ने कहा, “मेरे माता-पिता ने हमेशा मुझे बेटे की तरह पाला। उनका समर्थन न होता तो मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। मैंने जब भी मदद मांगी, उन्होंने कभी ‘ना’ नहीं कहा।”साई प्रशिक्षण केंद्र, हिसार में अभ्यास करने वाली निशु अब अगले साल जापान के नागोया में होने वाले एशियाई खेलों में हिस्सा लेने का लक्ष्य बना चुकी हैं। इसके लिए उन्हें सीनियर नेशनल और फेडरेशन कप में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय कैंप में जगह बनानी होगी। चाहे आगे जो भी हो, जिंद की यह खिलाड़ी बिना किसी पारिवारिक कुश्ती इतिहास के भी बहुत आगे तक का सफर तय कर चुकी है और संकेत साफ हैं कि यह सफर अभी लंबा चलेगा।—————

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