राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ ड्रामा, राजनीतिक इमेज और कांग्रेस में लीडरशिप बचाने की कोशिश

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर वोट चोरी का मुद्दा उठाकर राष्ट्रीय राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। राजनीतिक विश्लेषक इसे केवल चुनाव आयोग या ईवीएम पर आरोप मानकर नहीं देखते। उनका मानना है कि यह कदम राहुल गांधी की पार्टी में पकड़ मजबूत करने और नेतृत्व (लीडरशिप) बचाने की रणनीति है।हार का बाहरी कारण, नेतृत्व का बचावराजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्निहोत्री मानते हैं कि राहुल गांधी लगातार हार के लिए बाहरी कारणों को दोषी ठहराकर यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस की हार उनकी व्यक्तिगत कमजोरी की वजह से नहीं, बल्कि बाहरी ताकतों और परिस्थितियों के चलते हुई।राहुल गांधी की हार का इतिहास और बहानेराहुल गांधी ने साल 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के लिए पार्टी की कमजोरी को जिम्मेदार बताया था। 2019 में मोदी सरकार, ईडी, सीबीआई और आयकर को दोषी ठहराया। 2024 में ईवीएम को दोषी ठहराया। अब बिहार चुनाव में वोटिंग मशीन और चुनाव आयोग पर निशाना साध रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार डा. आशीष वशिष्ठ कहते हैं कि यह रणनीति कांग्रेस में नेतृत्व पर उठने वाले सवालों से बचाव का हिस्सा है।बिहार हारने पर नेतृत्व पर उठेंगे सवाललोकसभा में 240 सीटों की मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस की उम्मीदें महाराष्ट्र और हरियाणा की हार से ध्वस्त हुई थीं। अगर बिहार भी हार गए तो राहुल गांधी के नेतृत्व पर फिर से सवाल उठेंगे। इसलिए उनका कहना जरूरी है कि वे हारते नहीं, उन्हें हराया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि राहुल गांधी की यह चाल कांग्रेस के अंदर संदेश है कि जो नेता चुनाव नहीं जीत सके, उनके खिलाफ पार्टी भीतर ही भीतर विकल्प तलाशती है।नेशनल लेवल पर राजनीतिक संकेतराहुल गांधी का बयान भाजपा और विपक्षी दलों के लिए भी संदेश बन गया है। यह साफ संकेत है कि राहुल गांधी अब अपनी हार का कारण साबित करने के बजाय वोटिंग मशीनों और चुनाव आयोग को दोषी ठहराकर चुनावी मानसिकता को मोड़ना चाहते हैं। बिहार चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस के भीतर लीडरशिप की गहमागहमी तेज होगी। राहुल गांधी की यह चाल फिलहाल उन्हें सुरक्षा कवच देती है, लेकिन असली परीक्षा तो भविष्य के चुनाव और पार्टी की रणनीति में होगी।



