इस्लामिक सहयोग संगठन ने तालिबान से नाराजगी जताई

द इंडियन व्यू डेस्क 57 मुस्लिम देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन ने हाल ही में अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए जारी तुगलकी फरमान पर तालिबान के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी है।  हुआ कुछ यूं है कि अफगानिस्तान ने घरेलू और विदेशी गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) में महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी है।  इस्लामिक सहयोग संगठन  ने तालिबान के इस कदम को अल्लाह के दूत के नियमों का उल्लंघन करार दिया है।

ओआईसी ने यह बयान अफगानिस्तान में मानवीय स्थिति पर पर बुलाई गई कार्यकारी समिति की आपातकालीन बैठक के बाद जारी किया है। अफगानिस्तान में विकास और मानवीय स्थिति पर चर्चा करने के लिए जेद्दा में 11 जनवरी को आपातकालीन बैठक बुलाई गई थी।

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने अपने बयान में कहा है, “हमने अपने विशेष दूत के माध्यम से अफगानिस्तान सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि सरकार शिक्षा को

बढ़ावा दे।  इसके अलावा, हमने इस्लाम धर्म की ठोस और स्पष्ट नींव को ध्यान में रखते हुए लड़कियों के लिए स्कूल खोलने के पिछले वादों को पूरा करने के लिए कहा है।

आपको बता दें कि इस्लामिक सहयोग संगठन  की स्थापना 25 सितंबर 1969 को रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में हुई थी। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह सयुंक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है। इसमें सदस्य राष्ट्रों की संख्या 57 हैं, इसमें 40 मुस्लिम बहुल देश हैं।

इसका मुख्यालय सऊदी अरब के जेद्दा में है। पाकिस्तान इसके संस्थापक सदस्यों में शामिल है। इसके पास सयुंक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के स्थायी प्रतिनिधिमंडल है। रूस और थाईलैंड जैसे देश इसके पर्यवेक्षक सदस्य हैं, जहाँ मुस्लिम की संख्या अधिक नहीं है।

इस संगठन को दुनिया भर की मुस्लिमों की सामूहिक आवाज़ कहा जाता है। सयुंक्त राष्ट्र के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है। इसमें  सयुंक्त अरब अमीरात  और सऊदी अरब देश मुख्य भूमिका में है।

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