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महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ीं, तेज प्रताप का बगावती सुर एनडीए के लिए संजीवनी?

पटना : बिहार की सियासत में इन दिनों गमछे का रंग भी चुनावी मुद्दा बन गया है। कभी पिता लालू यादव की विरासत संभालने का दावा करने वाले तेज प्रताप यादव अब अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव पर ही खुला वार कर रहे हैं। गया की जनसभा में उन्होंने मंच से ऐलान किया है कि अब बिहार में हरा गमछा नहीं, कृष्णा भगवान का पीला गमछा चलेगा। तेज प्रताप ने बिना नाम लिए कहा कि हरा गमछा जयचंदों की पार्टी का प्रतीक है, जिन्होंने हमें परिवार और पार्टी से निकाला। जयचंदों ने मेरे खिलाफ साजिश रची, लेकिन अब जनता सच जान चुकी है।जयचंदों की पार्टी पर तंज, गुस्से में दिखे तेजगया की जनसभा में जब तेज प्रताप की नजर एक शख्स के गले में पड़े हरे गमछे पर पड़ी तो वे मंच से ही भड़क उठे। बोले- हमारी सभा में जयचंदों की पार्टी के कई बहरुपिए घूम रहे हैं। यह जनशक्ति जनता दल का मंच है, यहां हरा नहीं, केवल पीला गमछा चलेगा। तेज प्रताप के समर्थकों ने तुरंत ‘जय श्रीकृष्ण’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। दरअसल, जब तेज प्रताप यादव आरजेडी में थे, तब खुद को कृष्ण और तेजस्वी को अर्जुन बताया करते थे। पर अब वही कृष्ण अपने अर्जुन पर ही राजनीतिक ब्रह्मास्त्र छोड़ चुके हैं।जो रोजगार देगा, पलायन रोकेगा, मैं उसके साथलालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने बिहार की राजनीति में एक और सनसनी मचा दी। उन्होंने कहा कि 14 नवम्बर को बिहार में बदलाव होगा। जो पार्टी रोजगार देगी, पलायन रोकेगी और मुद्दों की बात करेगी, मैं उसी के साथ चलूंगा। चाहे वह एनडीए ही क्यों न हो। यह बयान तब आया है जब बिहार में पहले चरण की वोटिंग के बाद एनडीए और महागठबंधन दोनों ही अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।क्या भाजपा से हाथ मिलाएंगे तेज प्रतापप्रचार के लिए जाते समय पटना एयरपोर्ट पर तेज प्रताप यादव की मुलाकात भाजपा सांसद और अभिनेता रवि किशन से हुई थी। रवि किशन ने कहा कि तेज प्रताप मेरी तरह भोलेनाथ के भक्त हैं, उन पर महादेव की कृपा है। बस, इसी बात से सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या तेज प्रताप अब भाजपा से नजदीकी बढ़ा रहे हैं? हालांकि आरजेडी खेमे का मानना है कि तेज प्रताप कभी भी भाजपा या आरएसएस से हाथ नहीं मिलाएंगे, पर तेज प्रताप के हालिया बयान उस दावे पर सवाल खड़े कर रहे हैं।तेज प्रताप ने आरजेडी में न जाने की खाई है कसमतेज प्रताप यादव ने कुछ सप्ताह पहले कहा था कि मैं भगवद गीता की कसम खाता हूं, मरना कबूल करूंगा लेकिन आरजेडी में कभी वापस नहीं जाऊंगा। यह बयान उनके और तेजस्वी यादव के बीच संबंधों में आए टूट को स्पष्ट करता है। कभी दोनों भाई लालू परिवार की जोड़ी कहे जाते थे, लेकिन अब राजनीति ने दोनों को दो ध्रुवों पर खड़ा कर दिया है।48 प्रत्याशी, अकेली लड़ाई और ‘महुआ’ में त्रिकोणीय मुकाबलाआरजेडी से अलग होकर तेज प्रताप ने अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल के नाम से बिहार की सियासत में नई पारी शुरू की है। इस पार्टी ने कुल 48 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। तेज प्रताप की खुद की सीट महुआ विधानसभा अब त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है। एक ओर आरजेडी और जेडीयू के प्रत्याशी हैं तो दूसरी तरफ तेज प्रताप अपनी अलग पहचान और पीले गमछे के प्रतीक के साथ मैदान में हैं।परिवार से सियासत तककभी लालू यादव के दोनों बेटे साथ-साथ मंच साझा करते थे। पिता की राजनीतिक विरासत को दोनों मिलकर आगे बढ़ाने की बात करते थे। पर आज हालात उलट चुके हैं। तेजस्वी महागठबंधन के सीएम चेहरे के तौर पर प्रचार में जुटे हैं तो तेज प्रताप कृष्ण-भाव और स्वाभिमान की राजनीति के नाम पर ‘जनशक्ति जनता दल’ की गद्दी संभाले हुए हैं। अब बिहार के रण में लालू परिवार का यह घर-घमासान भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है।लालू परिवार में गमछा बनाम गद्दी की जंगराजनीतिक जानकारों का कहना है कि तेज प्रताप यादव का यह ‘पीला गमछा आंदोलन’ केवल प्रतीक नहीं, बल्कि तेजस्वी से अलग पहचान बनाने की कोशिश है। उनकी रणनीति साफ है कि आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाना और युवाओं में अपनी ‘क्रांतिकारी कृष्ण’ वाली छवि बनाना। हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह रणनीति कितनी कारगर होगी, लेकिन एक बात तय है कि बिहार की सियासत में तेज प्रताप का गमछा अब चर्चा का केंद्र बन गया है। 14 नवम्बर को जब ईवीएम खुलेगी, तब तय होगा कि बिहार में किसका गमछा चलेगा। तेजस्वी का हरा या तेज प्रताप का पीला। फिलहाल इतना तो तय है कि लालू परिवार में यह गमछा बनाम गद्दी की जंग बिहार के चुनावी रण को और भी दिलचस्प बना चुकी है।

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