मदरसा शिक्षकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से हाई कोर्ट का इनकार

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को मदरसा शिक्षकों और सरकारी शिक्षक के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। उनके पास से गाय का मांस और 16 जीवित मवेशी बरामद किए गए थे। कोर्ट ने कहा कि आरोपितों के खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है।

यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने परवेज अहमद और तीन अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचियों के खिलाफ मऊ जिले में आईपीसी की धारा 153-ए, 420, 429, 188, 269, 270, 273 और गोहत्या रोकथाम अधिनियम, 1955 की धारा 3/5/8 और धारा 11, जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1979 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 7/8 में मामला दर्ज कराया गया था। याचियों ने इसे रद्द करने की मांग की थी।

मामले में याची एक स्कूल में सहायक शिक्षक है, जबकि आवेदक नं. 2 मदरसा दारुल उलुम गौसिया कस्बा सलेमपुर में सहायक शिक्षक के रूप में भी कार्यरत है। आवेदक नं 3 एक मेडिकल शॉप चला रहा है और आवेदक नं. 4 हाफिज कुरान है। उनका यह निवेदन था कि फोरेंसिक जांच प्रयोगशाला से प्राप्त रिपोर्ट में यह खुलासा नहीं किया गया था कि विश्लेषण के लिए भेजा गया नमूना गाय का था। यह उनका मामला था कि गोहत्या रोकथाम अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता था।

दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि प्राथमिकी एक विस्तृत रिपोर्ट है। इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि 16 जीवित मवेशियों में से 7 भैंस, 1 गाय, 2 भैंस का बछड़ा, 5 नर भैंस का बछड़ा और गायका एक बछड़ा शामिल है। इसके अलावा 20 किलो प्रतिबंधित मांस बरामद किया गया था। राज्य द्वारा यह तर्क दिया गया कि यह कहना गलत था कि एफएसएल रिपोर्ट ने आवेदकों को क्लीन चिट दे दी है। क्योंकि आवेदकों और अन्य सह-आरोपितों के कब्जे में 16 मवेशी पाए गए थे और उनके पास कोई लाइसेंस नहीं था। कसाईखाना चलाते हैं।

Related Articles

Back to top button