मध्य प्रदेश कांग्रेस / एमपी में कांग्रेस के भीतर मतभेद, पार्टी की बैठक में शामिल नहीं हुए शीर्ष नेता
बीएस राय: मध्य प्रदेश में कांग्रेस कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक मतभेदों के बीच संपन्न हुई। बैठक में कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे प्रमुख नेता अनुपस्थित रहे, जिससे पार्टी में असंतोष उजागर हुआ। बैठक में संगठनात्मक सुधार और आगामी चुनावों की तैयारियों पर चर्चा हुई, लेकिन पार्टी के लिए आंतरिक मतभेद चुनौती बने हुए हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार को मतभेदों और विवादों के बीच समाप्त हो गई। बैठक में न केवल पार्टी के संगठनात्मक मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया गया, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति तैयार करने का भी लक्ष्य रखा गया। हालांकि, प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने पार्टी में गहराते असंतोष और आंतरिक मतभेदों को और उजागर कर दिया।
बैठक के पहले दिन पार्टी के कई बड़े नाम शामिल नहीं हुए। अनुपस्थित नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, प्रवीण पाठक, कमलेश्वर पटेल और दिग्विजय सिंह शामिल थे। इन अनुपस्थितियों ने पार्टी की एकता और समन्वय पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता उमंग सिंघार भी शामिल नहीं हुए। हालांकि, मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इसे सिंघार की स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा। पटवारी ने मीडिया में उनके रोने की खबरों को खारिज करते हुए कहा, “मैं योद्धा हूं और यह सिर्फ मीडिया की कल्पना है।” कई नेताओं की अनुपस्थिति को विश्लेषक पार्टी में गहरे असंतोष और आंतरिक खींचतान के संकेत के रूप में देख रहे हैं। पिछले साल विधानसभा चुनाव में भाजपा से मिली करारी हार के बाद से कांग्रेस के भीतर मतभेद बढ़ते जा रहे हैं।
नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि बैठक में शामिल नहीं होने वाले कई नेता अगले हफ्ते विधानसभा घेराव जैसे बड़े कदम उठाने के पक्ष में थे। लेकिन असंतोष के इन संकेतों के बावजूद पार्टी ने संगठनात्मक स्तर पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
पार्टी ने इन समितियों के गठन की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू की है, जो जमीनी स्तर पर पार्टी की पहुंच बढ़ाने का एक प्रयास है।
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए प्रभारी नेताओं की नियुक्ति करने का निर्णय लिया गया, ताकि चुनाव की तैयारियों को और मजबूत किया जा सके। इन निर्णयों से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस आगामी चुनावों को लेकर सक्रिय है, लेकिन आंतरिक विवादों के कारण इन प्रयासों की प्रभावशीलता पर सवाल उठ रहे हैं। चुनौतियों का सामना करना मध्य प्रदेश कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की एकता और नेतृत्व में विश्वास बहाल करना है।
हालांकि जीतू पटवारी ने बैठक की सकारात्मक तस्वीर पेश करने की कोशिश की, लेकिन नेताओं की अनुपस्थिति और मतभेदों को नजरअंदाज करना मुश्किल है। आगामी चुनावों में भाजपा का सामना करने के लिए पार्टी को एकता और स्पष्ट रणनीति की आवश्यकता होगी। संगठनात्मक सुधार और जमीनी स्तर पर मजबूती के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन जब तक नेताओं के बीच मतभेद दूर नहीं होंगे, इन सुधारों का पूरा असर नहीं दिखेगा।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक पार्टी के भीतर के अंतर्विरोधों को उजागर करती है। एक तरफ पार्टी आगामी चुनावों की तैयारियों में व्यस्त है, वहीं दूसरी तरफ बड़े नेताओं की अनुपस्थिति असंतोष को दर्शाती है। कांग्रेस के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय है, जहां एकजुटता और स्पष्ट रणनीति के बिना सफलता मुश्किल होगी। आने वाले महीनों में पार्टी का प्रदर्शन यह निर्धारित करेगा कि वह इन चुनौतियों से कैसे उभरती है।