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हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं है ?

ओम प्रभा (शोध छात्रा) आधुनिक एवं मध्यकालीन इतिहास विभाग ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज |

भावों और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम को भाषा कहते हैं । भावों एवं विचारों के अभिव्यक्ति के कई माध्यम हैं, यथा सांकेतिक, लिखित एवं बोलकर । मानव जाति सभ्यता के आरम्भ से ही स्वयं को व्यक्त करने के अनेक माध्यम तलाश करती रही है। इशारों के सहारे एक दूसरे को समझने का प्रयास अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर तक पहुँच गयी तब भाषा का विकास हुआ । भाषा के विकास में उस समाज और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जहाँ पर ये बोली जाती है। हिन्दी के विकास में उत्तर भारतीय राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत रही है और इसी भाषा के विभिन्न काल खण्डों में अलग-अलग स्वरूपों में हुए पृथक्करण से हिन्दी का विकास हुआ है। संस्कृत भाषा से पालि, पालि से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश, अपभ्रंश से अवहट्ट, अवहट्ट से पुरानी हिन्दी और पुरानी हिन्दी से आधुनिक हिन्दी का विकास हुआ ।

किसी भी भाषा का बोलचाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना, उसका मानकीकरण कहलाता है। मानकीकरण के तीन चरण होते हैं- प्रथम चरण में भाषा ‘बोली’ के रूप में होती है जो सीमित क्षेत्र में आपसी बोलचाल के रूप में प्रयोग होती है। इसका भण्डार सीमित होता है तथा इसका नियमित व्याकरण नहीं होता है । द्वितीय चरण में बोली भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक या प्रशासनिक कारणों से अपना क्षेत्र विस्तार कर लेती है और उनका पत्राचार, शिक्षा, व्यापार, प्रशासन आदि में प्रयाग होने लगता है, तब वह बोली न रहकर ‘भाषा’ की संज्ञा प्राप्त कर लेती है। तृतीय चरण मानक भाषा का चरण है, इस स्तर पर भाषा का प्रयोग विस्तृत हो जाता है। वह एक आदर्श रूप ग्रहण कर लेती है। उसकी अपनी शैक्षणिक, वाणिज्यिक, साहित्यिक, शास्त्रीय, तकनीकी एवं कानूनी शब्दावली होती है। इसी स्थिति में पहुँचकर भाषा ‘मानक भाषा’ बन जाती है और इसी को शुद्ध, आधुनिक एवं उच्च स्तरीय आदि भी कहा जाता है ।

हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा क्यों नहीं है, इसका उत्तर जानने से पहले हमें राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा का अन्तर समझना होगा। राष्ट्रभाषा और राजभाषा में मुख्यतः दो अन्तर हैं। पहला अन्तर इनके बोलने वालों की संख्या से है और दूसरा अन्तर इनके प्रयोग का है। राष्ट्रभाषा जहाँ जनसाधारण की भाषा होती है और लोग इससे भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े होते हैं तो वहीं राजभाषा का सीमित प्रयोग होता है। राजभाषा का प्रयोग मुख्यतः सरकारी कार्यालयों के कर्मियों द्वारा किया जाता । भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है। यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क के माध्यम के रूप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।

हालाँकि आजादी के बाद इसे लेकर अनेक तरह के विवाद हुए और अन्ततः अंग्रेजी के साथ इसे राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। आरम्भ में यह प्रावधान 15 वर्षों के लिए था और साथ ही संसद को शक्ति दी गयी थी कि वो अंग्रेजी के प्रयोग को बढ़ा सकती है। वर्ष 1965 में हिन्दी को एकमात्र राजभाषा बनाये जाने के समय के पूर्व ही हिन्दी भाषी राज्यों का विरोध अत्यन्त तीव्र हो गया और अन्ततः तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अहिन्दी भाषी राज्यों को ये आश्वासन देना पड़ा कि आपकी सहमति के बिना हिन्दी को एकमात्र राजभाषा वही बनाया जायेगा। इसी सन्दर्भ में वर्ष 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया। वर्ष 1967 में इसे संशोधित किया गया। इसमें किये गये प्रावधानों से अहिन्दी भाषी राज्यों की तो चिन्ता खत्म हो गयी अगर हिन्दी को राष्ट्रीय एकता का प्रमुख तत्व मानने वालों की चिंताएँ बढ़ गयीं। सरकार ने इन चिन्ताओं के समाधान हेतु त्रिभाषा फार्मूला दिया ।

इसी क्रम में 1976 में राजभाषा अधिनियम लाया गया और इसके अन्तर्गत राजभाषा विभाग की स्थापना की गयी । यह विभाग ही हिन्दी के प्रचार-प्रसार से सम्बन्धित विभिन्न समारोहों जैसे हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़ा और हिन्दी सप्ताह का आयोजन करता है । इसी के तत्वावधान में 10 जनवरी को विश्व दिवस भी मनाया जाता है । राजभाषा हिन्दी से सम्बन्धित प्रावधान संविधान में भाग 5, भाग 6, भाग 17 में समाविष्ट है। अनुच्छेद 120 में प्रावधान है कि संसदीय कामकाज का भाषा हिन्दी व अंग्रेजी होगी । भाग 6 मे अनुच्छेद 210 में राज्य विधान मण्डल के लिए भी ऐसे प्रावधान हैं । हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा है जो 60 करोड़ लोगों के द्वारा बोली जाती है और सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी है जो 150 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। हिन्दी भारत के अलावा फिजी की भी राजभाषा है। विश्व के कई देश जैसे मॉरीशस, सूरीनाम, त्रितिनाद, गुयाना आदि की क्षेत्रीय भाषा हिन्दी है। विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में किया गया है। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा का दर्जा अभी भी हिन्दी को नहीं मिल सका है।

हिन्दी भाषा की एक भाषा के स्तर पर अभी भी अनेक चुनौतियाँ है । इसमें सबसे बड़ी चुनौती तो इसे ‘राष्ट्रभाषा की स्वीकार्यता का न मिलना है तथा हिन्दी सम्पूर्ण भारत की संवाद की भाषा नहीं हो पायी है। इसके अलावा एक उच्च शिक्षित अभिजात्य वर्ग ऐसा भी है जो हिन्दी बोलने में शर्म महसूस करता है। हिन्दी भाषा के सामने एक प्रमुख चुनौती यह है कि अब तक यह रोजगार की भाषा नहीं बन पायी। अभी भी भारत में उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का माध्यम अधिकांशतः अंग्रेजी ही है। हिन्दी भाषा को जनसामान्य की भाषा बनाने तथा वर्तमान स्थिति में सुधार के लिए लोगों की मानसिकता में परिवर्तन करना होगा जिसके लिए स्कूल, कॉलेज आदि जगहों पर सेमिनार, कार्यशाला, समारोह आदि का आयोजन करना पड़ेगा ताकि लोग हिन्दी को अन्तःमन से स्वीकार कर सकें ।

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