टेस्ट क्रिकेट की ताकत विविधता में, समानता में नहीं: जोनाथन ट्रॉट
अफगानिस्तान के मौजूदा मुख्य कोच और इंग्लैंड के पूर्व बल्लेबाज जोनाथन ट्रॉट का मानना है कि विश्व क्रिकेट में चल रही नई बहस—क्या टेस्ट क्रिकेट को एक समान शैली में ढाला जाना चाहिए—दरअसल इस प्रारूप की मूल भावना के विरुद्ध है। ट्रॉट के अनुसार टेस्ट क्रिकेट की असली शक्ति इसकी परिस्थितियों और दृष्टिकोण की विविधता में छिपी है।
दुबई में डीपी वर्ल्ड इंटरनेशनल लीग टी-20 के दौरान मीडिया से बातचीत में ट्रॉट ने साफ कहा कि टीमों को अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुरूप खेलने का अधिकार है और यही टेस्ट मैचों को वैश्विक स्तर पर विशिष्ट बनाता है। उन्होंने भारत के स्पिन-अनुकूल विकेट तैयार करने के फैसले को बिल्कुल सामान्य बताया।
हाल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ समाप्त हुई दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला में भारत ने स्पिन को मदद देने वाले विकेट बनाए थे, हालांकि यह रणनीति उलटी पड़ गई और टीम को दोनों मैचों में हार मिली—लेकिन ट्रॉट के अनुसार यह भी टेस्ट क्रिकेट का ही एक पहलू है।

ट्रॉट ने समझाया, “भारत जाएँ तो गेंद स्पिन करेगी, श्रीलंका जाएँ तो स्पिन करेगी, और ऑस्ट्रेलिया जाएँ तो आपको तेज और उछाल भरी पिच मिलेगी। कोई भी टीम अचानक ‘सबको एक जैसा बनाने’ की कोशिश नहीं करती—और न ही यह आवश्यक है। क्रिकेट की खूबसूरती ही यही है कि हर जगह चुनौती अलग मिलती है।”
उन्होंने आगे कहा कि एक खिलाड़ी और अब कोच के रूप में अलग-अलग परिस्थितियों में प्रदर्शन कराना ही उनके लिए सबसे बड़ी कसौटी है।
टेस्ट क्रिकेट की शैलीगत विविधता पर चर्चा करते हुए ट्रॉट ने इस साल इंग्लैंड में भारत के साथ खेले गए 2-2 से ड्रॉ रही श्रृंखला का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि इस सीरीज़ में दो बिल्कुल अलग दृष्टिकोण देखने को मिले—भारतीय कप्तान शुभमन गिल का नेतृत्व और बेन स्टोक्स की आक्रामक ‘बैज़बॉल’ शैली—जो यह साबित करता है कि अलग सोच टेस्ट क्रिकेट को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है।
ट्रॉट ने टेस्ट प्रारूप को लेकर बदलती धारणा की ओर भी इशारा किया— “एक समय था जब टेस्ट क्रिकेट को बहुत ड्रॉ होने के कारण उबाऊ कहा जाता था। आज हम कहते हैं कि मैच जल्दी खत्म हो रहे हैं और परिणाम बहुत आते हैं। इसका मतलब है कि परिस्थितियाँ हमेशा संतुलित नहीं होतीं, और हमें इसका ध्यान रखना चाहिए।”
अंत में उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा कि टेस्ट और वनडे क्रिकेट को एक ही दायरे में सीमित करना सही नहीं होगा।
“हर टीम का खेलने का तरीका अलग है—यही विविधता क्रिकेट को रोमांचक बनाती है। हर देश का दृष्टिकोण अलग है, और इसी से इस खेल की वैश्विक पहचान बनती है।”



