जूनियर हॉकी में संघर्ष : स्विटजरलैंड और न्यूजीलैंड के खिलाड़ी आर्थिक बाधाओं से जूझते
स्विटजरलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों में फील्ड हॉकी एक ऐसा खेल है, जिसमें जूनियर खिलाड़ी अपने खेल के सपनों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत और सामाजिक प्रयासों पर निर्भर रहते हैं।
जूनियर हॉकी प्रोग्रामों के लिए सरकार से या तो कोई वित्तीय सहयोग नहीं मिलता या मात्र नाममात्र का, जिसके कारण अंडर-21 स्विस और कीवी खिलाड़ी चेन्नई और मदुरै में चल रहे एफआईएच जूनियर विश्व कप में भाग लेने के लिए खुद धन जुटाने को मजबूर होते हैं।
स्विटजरलैंड के मुख्य कोच जेर लेवी ने एक समाचार एजेंसी संग बातचीत में कहा, ‘‘स्विटजरलैंड में हॉकी को बढ़ावा देने के लिए हम हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन वहां आइस हॉकी अधिक लोकप्रिय है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘हॉकी हमारे देश में मूल रूप से एक अमेच्योर खेल है।

खिलाड़ियों को टूर्नामेंट में खेलने के लिए खुद पैसे जुटाने पड़ते हैं। उन्हें जनता से सहयोग लेना होता है, यूनिवर्सिटी या काम छोड़कर ट्रेनिंग करनी पड़ती है, लेकिन हॉकी के प्रति उनके प्रेम के कारण वे यह सब करते हैं।’’
लेवी ने इस चुनौती का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘हमारे महासंघ और सरकार द्वारा मिलने वाला फंड बहुत कम है। हमें अधिक टेस्ट मैच खेलने और तैयारी के लिए अतिरिक्त फंड की जरूरत है, ताकि खिलाड़ी उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा का अनुभव हासिल कर सकें।’’
इस कठिन परिस्थिति के बावजूद, स्विटजरलैंड ने पूल बी में दोनों मैच जीतकर भारत के साथ शीर्ष स्थान साझा किया। न्यूजीलैंड के स्ट्राइकर जोंटी एल्मेस, जिन्होंने टूर्नामेंट में अब तक सात गोल किए हैं, ने बताया, ‘‘हमारे यहां सभी अंडर-21 प्रोग्रामों के लिए पैसा खुद जुटाना पड़ता है, जो अक्सर माता-पिता द्वारा दिया जाता है।
हम विभिन्न फोरम और प्लेटफॉर्म के माध्यम से धनराशि जुटाते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कई खिलाड़ियों के लिए यह बहुत मुश्किल होता है, लेकिन माता-पिता की मेहनत और समर्पण उनके सपनों को जीवित रखते हैं। जूनियर प्रोग्रामों के लिए हमें सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती।’’
इसके विपरीत, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सभी अंडर-21 प्रोग्रामों को सरकार से पर्याप्त आर्थिक सहयोग प्राप्त होता है, जो खिलाड़ियों को पूरी तरह से खेल और प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की सुविधा देता है।



