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बीरेन्द्र लाकड़ा : कोचिंग खेल से भी बड़ी चुनौती, जूनियर टीम के साथ अनुभव साझा करने में जुटे

पूर्व भारतीय हॉकी डिफेंडर और टोक्यो ओलंपिक कांस्य पदक विजेता बीरेंद्र लाकड़ा ने कोचिंग को अपने खेल जीवन से भी अधिक चुनौतीपूर्ण बताया है।

उन्होंने कहा कि यह नया अनुभव उन्हें अपने कौशल को सुधारने और नए तरीके सीखने का अवसर देता है, ताकि भविष्य में आने वाले अवसरों का भरपूर लाभ उठा सकें।

लाकड़ा वर्तमान में भारतीय पुरुष जूनियर हॉकी टीम के सहायक कोच हैं और अपने पूर्व साथी व मुख्य कोच पीआर श्रीजेश के साथ मिलकर चेन्नई और मदुरै में आयोजित एफआईएच जूनियर विश्व कप में टीम का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

साभार : गूगल

ओडिशा के 35 वर्षीय इस खिलाड़ी ने मई में जूनियर कोचिंग स्टाफ में शामिल होकर टीम की रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभाई है।

उन्होंने एक समाचार एजेंसी संग बातचीत में कहा, ‘‘खिलाड़ी के रूप में मैदान पर अलग अनुभव होता है, जबकि कोच की भूमिका पूरी तरह अलग होती है। यह मेरे लिए सीखने और नई चीजें अपनाने का एक शानदार मौका है।’’ लाकड़ा ने स्वीकार किया कि कोचिंग खेल से अधिक जटिल और जिम्मेदारी भरी होती है।

‘‘कोचिंग में रणनीति तैयार करनी होती है, टीम और खिलाड़ियों का प्रबंधन करना होता है, उन्हें प्रेरित करना होता है, और भी कई जिम्मेदारियां होती हैं। इसलिए इसे करना खेल खेलने से थोड़ी कठिन चुनौती है।’’

2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2018 में कांस्य पदक विजेता लाकड़ा ने अभी तक कोई एफआईएच कोचिंग कोर्स नहीं किया है, लेकिन जूनियर विश्व कप के बाद इसे करने की योजना बना रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल मेरा ध्यान जूनियर टीम पर है, लेकिन जब भी मौका मिलेगा, मैं अपने कोचिंग कौशल को निखारने और आत्मविश्वास के साथ नए तरीके सीखने के लिए तैयार रहूंगा।’’

मैच के दौरान उनकी मुख्य जिम्मेदारी डगआउट में खिलाड़ियों से संवाद रखना है, जबकि मुख्य कोच श्रीजेश खेल पर अपनी पैनी नजर रखते हैं और स्थिति अनुसार रणनीतिक सलाह देते हैं।

लाकड़ा बताते हैं, ‘‘श्रीजेश अक्सर गैलरी या ऊपर कहीं बैठे होते हैं और मुझे मैच की स्थिति के अनुसार जानकारी देते हैं, जिसे मैं खिलाड़ियों तक पहुंचाता हूं।’’ उन्होंने बताया कि 10-12 साल साथ खेलने की वजह से उनका तालमेल बेहद मजबूत है। ‘‘हम खेल के दिनों में एक ही कमरे में रहते हैं, इसलिए समझ आसान हो जाती है और चीजें सुचारू रूप से चलती हैं।’’

श्रीजेश को एक सख्त और मेहनती कोच के रूप में जाना जाता है, और लाकड़ा मानते हैं कि जूनियर स्तर पर कोचिंग करते समय ऐसा दृष्टिकोण जरूरी है।

‘‘कोचिंग में मैत्री या सख्ती का मामला नहीं होता। बड़े टूर्नामेंट में खिलाड़ियों के साथ दोस्ताना व्यवहार नहीं किया जा सकता। जूनियर खिलाड़ियों से एक तरह की दूरी बनाए रखना जरूरी है, ताकि वे अपने विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकें।’’

लाकड़ा ने अंत में कहा, ‘‘यह जूनियर खिलाड़ियों के लिए सीखने और विकसित होने का समय है। ये खिलाड़ी पहले ही काफी अनुभव रख चुके हैं और उन्हें खुद पता है कि उन्हें किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है।’’

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