Trending

बिहार विस चुनाव : भरोसे की राजनीति ने पलटा दशकों पुराना जातीय समीकरण

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का रण इस बार पुरानी परंपराओं से अलग और नए समीकरणों से भरा हुआ है। कभी जातिगत राजनीति की प्रयोगशाला कहे जाने वाले इस राज्य में अब वोटर का मूड बदल रहा है। विकास, महिला भागीदारी, रोजगार और सुशासन जैसे मुद्दे पहली बार जातीय संतुलन से बड़ा कारक बनते दिख रहे हैं। चुनावी रणभूमि में जहां एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) अपने पुराने साथियों के साथ नई ऊर्जा से मैदान में उतरा है। वहीं महागठबंधन में अंदरूनी खींचतान और तीसरे मोर्चे की एंट्री ने पूरा समीकरण उलझा दिया है।जात नहीं, जनमत की नई दिशाबिहार की राजनीति में अब तक गांव की भाषा में जात का गणित ही जीत-हार का पैमाना रहा है। लेकिन इस बार समीकरण बदलते दिख रहे हैं। अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) 36 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27 प्रतिशत और दलित लगभग 20 प्रतिशत आबादी के साथ अब भी निर्णायक भूमिका में है, लेकिन युवा और महिला वोटरों का असर तेजी से बढ़ा है। नीतीश कुमार के महिला आरक्षण और छात्रा प्रोत्साहन कार्यक्रमों ने महिला मतदाताओं को एनडीए खेमे की ओर खींचा है।फ्रीबीज और भरोसे का संगम, वादों से आगे विश्वास की जंगपिछले चुनावों में वादा किया जाता था, इस बार वितरण दिखाया जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से महिला पेंशन, छात्रवृत्ति, वृद्ध पेंशन और कृषि राहत योजनाओं का सीधा लाभ मतदाताओं तक पहुंचा है। राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्र मानते हैं कि अब वोटर जात या नारे से नहीं, बल्कि खाते में आए पैसे और घर तक पहुंचे काम से प्रभावित हो रहा है।डिजिटल प्रचार का नया दौरइस बार बिहार की गलियों में माइक कम, मोबाइल ज्यादा गूंज रहा है। चुनावी प्रचार अब हैशटैग और रील के युग में पहुंच चुका है। भाजपा, जेडीयू और राजद तीनों पार्टियों ने सोशल मीडिया टीमों को जिलास्तर पर एक्टिव किया है। पहले जो कार्यकर्ता साइकिल से मोहल्लों में पर्चे बांटते थे, अब वही व्हाट्सऐप ग्रुप और लाइव वीडियो के जरिए मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार डिजिटल कनेक्ट बूथ जितना ही अहम हो गया है।मतदान व्यवहार में बड़ा बदलावपहले चरण में बिहार ने रिकॉर्ड 65.08 प्रतिशत मतदान दर्ज किया है। यह राज्य का अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा रही। गांवों में महिला कतारें लंबी थीं। जबकि शहरी इलाकों में युवा वोटरों का उत्साह दिखा। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से 65 लाख फर्जी या निष्क्रिय नाम हटाए हैं, जिससे कई सीटों पर पुराने सेट समीकरण हिल गए हैं।मतदाताओं ने बदला खेल, चेतना-चैलेंज और चेंज का नया अध्याय2020 के मुकाबले 2025 का बिहार चुनाव पूरी तरह से बदली हुई राजनीति का संकेत देता है। अबकी बार मुकाबला सिर्फ दो ध्रुवों के बीच नहीं, बल्कि त्रिकोणीय हो गया है- एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज के बीच। 2020 में जहां सुशासन बनाम बेरोजगारी का नारा गूंजा था, वहीं 2025 में विकसित बिहार-नया बिहार का एजेंडा प्रमुखता में है। चुनावी मुद्दे भी जातीय पहचान से आगे बढ़कर विकास, महिला सुरक्षा, डिजिटल गवर्नेंस और रोजगार जैसे ठोस विषयों पर केंद्रित हैं। सबसे बड़ा बदलाव मतदान प्रतिशत और महिला भागीदारी में देखने को मिला। 2020 में औसतन 57 प्रतिशत मतदान हुआ था। जबकि इस बार पहले चरण में यह बढ़कर 65.08 तक पहुंच गया। खास बात यह रही कि कई सीटों पर महिला मतदाताओं की भागीदारी 68 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो सेक्रेट वोटर की नई राजनीतिक शक्ति को दिखाता है। 2025 का चुनाव तकनीक आधारित प्रचार का भी नया प्रयोग साबित हुआ। अब रैलियों और नारों की जगह सोशल मीडिया, डेटा एनालिटिक्स और लाइव संवाद ने ली है।जातीय समीकरण हुए फीकेराजनीतिक विश्लेषक चन्द्रमा तिवारी मानते हैं कि यह बिहार का पहला चुनाव है जिसमें जातीय समीकरण से ज्यादा प्रशासनिक रिपोर्ट कार्ड चर्चा में है। अब जनता यह पूछ रही है कि स्कूल में टीचर हैं या नहीं, अस्पताल में दवा मिलती है या नहीं। वहीं समाजशास्त्री रंगनाथ तिवारी कहते हैं कि महिला वोटर अब मौन नहीं रहीं। वे ‘सेक्रेट वोटर’ बन गई हैं और कई सीटों पर नतीजे बदल सकती हैं।बिहार का बदला मिजाज: अब ‘कौन है’ नहीं, ‘क्या कर रहा है’ पर वोटबिहार चुनाव-2025 दरअसल एक संक्रमण का चुनाव है, जहां पुराने जातीय गठजोड़ कमजोर पड़ रहे हैं और नई राजनीतिक पहचान उभर रही है। अब मतदाता ‘कौन है’ से ज्यादा ‘क्या कर रहा है’ पर वोट दे रहा है। यह वही बिहार है, जहां जाति का समीकरण दशकों तक राजनीति की रीढ़ था, लेकिन अब वही जनता ‘विकास का वोटर’ बनती दिख रही है।

Related Articles

Back to top button